शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

३३५.सुख

आज बहुत ख़ुश हूँ मैं.

लम्बी अँधेरी रात में 
रौशनी दिखी है कहीं,
नीरव घने जंगल में 
कोई चिड़िया चहचहाई है,
भटके हुए राही को 
दिखी है कोई पगडंडी,
घने काले बादलों में 
कोई बिजली चमकी है. 

आज बहुत ख़ुश हूँ मैं,
सालों की यंत्रणा के बाद 
आज मेरी मुट्ठी में आया है 
गेहूं के दाने जितना सुख.

शनिवार, 24 नवंबर 2018

३३४. पिंजरा


पिंजरे में रहते-रहते 
अब चाह नहीं रही 
कि आज़ाद हो जाऊं,
खुले आसमान में उड़ूँ,
देखूं कि मेरे पंखों में 
जान बची भी है या नहीं।

अब हर वक़्त मुझे 
घेरे रहती है चिंता 
कि हवा जो पिंजरे में आ रही है,
कहीं रुक न जाए,
दाना जो रोज़ मिल रहा है,
कहीं बंद न हो जाए,
मिलता रहे मुझे अनवरत 
बस चोंचभर पानी।

अब छोटा हो गया है
मेरी ख़्वाहिशों का दायरा,
न जाने अब मैं क्या हूँ,
पर पंछी तो बिल्कुल नहीं हूँ.

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

३३३. अच्छा दिन


बहुत अच्छा दिन है आज.

आँगन में बरसों से 
बंजर खड़ा था जो पेड़,
दो चार फल लगे हैं उसमें,
बेल जो चढ़ गई थी 
अधिकार से छतपर, 
चंद कलियाँ खिल आई हैं उसमें।

मेरी कलम जो गुमसुम थी,
उदास थी कई दिनों से,
आज फिर से चल पड़ी है,
लिख डाली है आज उसने 
एक ठीकठाक सी कविता।

रविवार, 11 नवंबर 2018

३३२. नाविक से


नाविक,
चलो,नाव निकालें,
निकल पड़ते हैं समुद्र में,
खेलेंगे लहरों से,
झेलेंगे तेज़ हवाएं,
थक जाएंगे,
तो लौट आएँगे किनारे पर,
लेट जाएंगे रेत पर,
मुर्दे की तरह चुपचाप,
महसूस करेंगे जीवन,
अनुभव करेंगे आनंद
थककर चूर होने का. 

नाविक, 
चिंता नहीं,
अगर लहरों में खो गए,
हवाओं में भटक गए,
कोई फ़िक्र नहीं,
अगर लौट न पाए,
वैसे भी किनारे पर 
हम ज़िंदा कहाँ हैं?

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

३३१. आनेवाली दिवाली


आनेवाली है दिवाली,
इंतज़ार है दियों का,
हज़ारों-लाखों दिए जलेंगे
जैसे हर साल जलते हैं,
चकाचौंध रोशनी होगी
जैसे हर साल होती है,
पर अगले ही दिन 
बुझ जाएंगे चिराग़,
फैल जाएगा अँधेरा.

काश यह दिवाली थोड़ी अलग हो,
कुछ कम चिराग़ जलें,
पर देर तक जलें,
थोड़ी कम रोशनी हो,
पर दूर रखे अँधेरा 
कम-से-कम कुछ दिन. 

ऐसी भी क्या ख़ुशी,
जो रॉकेट की तरह उठे,
फिर आ गिरे ज़मीन पर,
ख़ुशी हो तो ऐसी,
जैसे आसमान में सितारे,
मद्धम -मद्धम ही सही,
पर रात भर चमकें.