शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

२८३.रफ़्तार


धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ रही है गाड़ी,
छूट गया पीछे स्टेशन,
ओझल हो गए परिजन,
जाने-पहचाने मकान,
गली-कूचे, सड़कें,
पेड़,चबूतरे- सब कुछ.

पीछे रह गया मेरा शहर,
धीरे-धीरे छूट जाएगा 
मेरा ज़िला, मेरा सूबा,
पीछे रह जाएगी यह हवा,
इसकी ताज़गी,
यह मिट्टी, इसकी ख़ुशबू.

रफ़्तार के नशे में हूँ मैं,
आँखें मुंदी हैं मेरी,
एक नई मंज़िल के सपने का 
ख़ुमार है मुझ पर.

नई मंज़िल न जाने कैसी होगी,
न जाने होगी भी या नहीं,
पर जो था, जो है,
सब छूटता जा रहा है.

शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

२८२. दिया और हवाएं


इस बार की दिवाली कुछ अलग थी,
बस थोड़े से चिराग़ जल रहे थे,
अचानक तेज़ हवाएं चलीं,
एक-एक कर बुझ गए दिए सारे,
पर एक दिया जलता रहा,
लड़ता रहा तब तक,
जब तक थक-हारकर 
चुप नहीं बैठ गईं हवाएं.

उस एक चिराग़ ने प्रज्वलित किए
वे सारे दिए, जो बुझ गए थे 
और बहुत से ऐसे दिए भी, 
जिन्हें जलाया नहीं गया था.

अब सैकड़ों-हज़ारों दिए जल रहे हैं
आत्म-विश्वास से भरपूर,
सिर उठाए खड़ी है उनकी लौ
और किसी कोने में सहमी सी बैठी हैं 
तेज़ हवाएं.

शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

२८१. दहशत में जीभ

आजकल गुमसुम रहती है मेरी जीभ ,
बोलती नहीं कुछ भी,
बस चुपचाप पड़ी रहती है मुंह में.

खो गया है उसका अल्हड़पन,
फूल नहीं झरते अब उससे,
मेरी जीभ नहीं करती अब 
रोतों को हंसा देने वाली बातें,
अब नहीं करती वह 
पहले सी ज़िद,
नहीं कहती कहीं भी जाने को,
नहीं कहती कुछ भी खाने को,
सारे स्वाद भूल गई है मेरी जीभ.

अब बच्ची नहीं रही मेरी जीभ ,
अचानक से बड़ी हो गई है,
आजकल मेरी जीभ 
मेरे ही दांतों की दहशत में है.

शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

२८०. अंततः

पहले जलता है मेघनाद,
फिर जलता है कुम्भकर्ण.

बचा रहता है रावण देर तक,
क्योंकि सबसे ताक़तवर होता है वह,
पर अंत तो उसका भी होता है,
आख़िर में जलता है वह भी.

सबसे ताक़तवर आख़िर में जलता है,
पर जलना पड़ता है हर आततायी को 
कभी-न-कभी.