सोमवार, 30 जनवरी 2012

२०.मेरी खोज में मैं 

मैं कहीं खो गया हूँ  
और मेरी खोज में 
मुझे ही लगाया गया है.

बहुत खोजा मैंने खुद को,
पर मुझे कहीं नहीं मिला मैं,
थक-सा गया हूँ खोजकर,
हिम्मत भी हार बैठा हूँ  
छोड़ दी है सारी उम्मीद
कि कभी मिल पाऊंगा मैं खुद से.

अब कोई और प्रयास करे,
ढूंढ निकाले मुझे कहीं से
और जब मैं मिल जाऊं 
तो मुझे भी खबर भिजवा दे 
कि मैं जो कहीं खो गया था
आख़िरकार मिल गया हूँ. 

8 टिप्‍पणियां:

  1. ओंकार जी,लगता है आप सचमुच कही खो गए है,तभी आजकल मेरे पोस्ट पर नहीं आरहे है,आइये ....
    बहुत सुंदर रचना, प्रस्तुति अच्छी लगी.,
    welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

    जवाब देंहटाएं
  2. अपनी खोज स्वयं ही करनी पड़ती है .. कोई और दूसरा नहीं खोज सकता .. कश्मकश सी रचना ..

    जवाब देंहटाएं
  3. खुद से खुज की खोज नहीं हो पायगी तो दूसरा तो कभी नहीं खोज सकता ...

    जवाब देंहटाएं
  4. अब कोई और प्रयास करे,
    ढूंढ निकले मुझे कहीं से
    और जब मैं मिल जाऊं
    तो मुझे भी खबर भिजवा दे

    अद्भुत रचना...बधाई

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  5. जिधर देखो हर शक्स खुद में गुम सा है
    तलाश करने के लिए प्यार ज़रूरी है ...

    जवाब देंहटाएं
  6. गहरी सोच सुन्दर अभिव्यक्ति |हार्दिक बधाई | होली पर शुभ कामनाएं |
    आशा

    जवाब देंहटाएं