मछलियां उछल रही हैं पानी में,
जाने क्या मज़ा है पानी में?
मदहोशी-सी छा गई मुझ पर,
ऐसा क्या मिलाया तूने पानी में?
डूबनेवाला भी वही, तैरनेवाला भी वही,
कुछ तो करिश्मा है नदी के पानी में.
देखा नहीं कि प्यास बुझने लगी,
कोई तो बात है यहाँ के पानी में.
हरेक बदल जाता है यहाँ आकर,
कुछ तो ख़ास है शहर के पानी में.
कभी मुझे भी देना अचानक धक्का,
मैं भी देखूं, कैसे डूबते हैं पानी में.
बिखेर देना मेरी राख खेतों में,
मुझे नहीं डूबना मरकर पानी में.
जितना पिया, प्यास बढ़ती गई,
कुछ तो जादू था कुएँ के पानी में.
डूबिए शौक़ से, गर चाहते हैं डूबना,
खींचिए मत किसी को अपने साथ पानी में.
ऐसा भी क्या जीना कि बरसात से डरें,
फेंकिए छाता, भीगिए पानी में.
बड़ा कमज़ोर था, जो हवा में उड़ता था,
डूबकर मर गया बित्ता-भर पानी में.
बढ़िया
जवाब देंहटाएंपानी पानी रे ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 27 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएं