शुक्रवार, 28 जून 2024

७७३.प्रतिमा

 


सुनो,

जब पत्थर बरसते हैं गलियों में,

आग लगाई जाती है बस्तियों में,

जब सड़कों का रंग लाल 

और आसमान का काला हो जाता है,

जब गीत-संगीत की जगह 

गूँजते हैं ज़हरीले नारे,

बच्चों की किलकारियों की जगह 

गूँजती है उनके रोने की आवाज़. 


जब भूख, नफ़रत और डर का 

अड्डा हो जाता है मोहल्लों में,

तब तुम नुक्कड़ पर खड़े होकर 

इतना हँस कैसे लेते हो?


तुमसे तो अच्छी वह प्रतिमा है,

जो चौराहे पर खड़ी रहती है,

सब कुछ देखती रहती है,

कुछ कर नहीं पाती,

पर कम-से-कम हँसती तो नहीं है. 


शुक्रवार, 21 जून 2024

७७२.वज़न

 


दोस्त,

मुझे माफ़ करना,

मैं ज़रा भारी हूँ,

मुश्किल है मुझे उठाना,

ख़ासकर तब,

जब उठानेवाले कमज़ोर हों. 


दोस्त,

यह कहाँ लिखा है 

कि चार लोग ही उठाएँगे,

आठ क्यों नहीं हो सकते,

ख़ासकर तब,

जब उठाना मुझ जैसे को हो. 


दोस्त,

कभी किसी को 

नहीं उठाना पड़ा मुझे,

मैंने ही उठाया सबको,

अब जबकि मैं मजबूर हूँ,

क्या वे नहीं उठा सकते मुझे,

जिन्हें मैंने हमेशा उठाया? 


दोस्त,

मैं उन सबसे माफ़ी माँगता हूँ,

जिनके कंधे दुखेंगे,

अगर मुझे पहले से भनक होती,

तो मैं कोशिश करता 

कि जीते जी मेरा 

वज़न कम हो जाय.

 


गुरुवार, 13 जून 2024

७७१.यादों से

 


यादों, 

मैं तुम्हें छोड़ रहा हूँ,

तुमसे कहूँगा नहीं 

कि फिर मिलेंगे,

मिलना ही होता,

तो छोड़ता ही क्यों?


यादों,

तुम बेड़ियाँ हों मेरे पाँवों की,

मैं जब भी चलता हूँ,

तुम रोक लेती हो मुझे, 

ऐसे तो नहीं रोकती थी 

मेरी अपनी बेटी भी मुझे. 


यादों,

किस हक़ से रोकती हो मुझे,

तुम्हारा रिश्ता तो घटनाओं से है, 

घटनाओं ने तो एक बार ही तड़पाया,

तुम तो बार-बार तड़पाती हो मुझे. 


यादों,

कम-से-कम इतना लिहाज़ तो रखो 

कि मेरे बेडरूम में न घुसो, 

अक्सर जब तुम आती हो,

मेरी आँखें नींद से बोझिल होती हैं,

मुझे आराम की सख़्त ज़रूरत होती है. 


यादों,

मैं जानता हूँ कि मेरी बातें फ़िज़ूल हैं, 

जानता हूँ कि बहुत ज़िद्दी हो तुम, 

बहुत बार विदा किया तुम्हें,

पर तुमने मेरा पीछा ही नहीं छोड़ा. 


यादों,

यह कैसा एकतरफ़ा प्यार है, 

जिसमें ख़ुद पर आंच तक नहीं आती,

पर जिससे प्यार करो, वह तबाह हो जाता है. 


बुधवार, 5 जून 2024

७७०.मैं और मेरा मकान

 


मेरा मकान- 

बदरंग, 

जैसे बालों-भरे सिर पर 

गंजेपन का कोई टुकड़ा,

जैसे साफ़ कपड़े पर 

कोई तेल का धब्बा,

जैसे खुरचा हुआ कोई पुराना घाव. 


मेरा मकान-

अकेला,

जैसे घर के कोने में पड़ा 

पिछले साल का कैलेंडर,

जैसे जाड़े की रात में 

चौराहे पर खड़ा बूढ़ा,

जैसे अँधेरे में टिमटिमाती 

गाड़ी की पिछली बत्ती. 


मैं- 

बदरंग और अकेला,

जैसे मेरा मकान.