शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

७११. चक्करघिन्नी

 


तुम्हें क्या चाहिए,

कहती क्यों नहीं?

क्या अच्छा लगता है,

बताती क्यों नहीं?

तुम हंसती क्यों नहीं,

कभी रोती क्यों नहीं?


बोलने के लिए आँखें ही बहुत हैं,

तुम्हारे मुंह में तो फिर भी ज़बान है,

एक दिल है तुम्हारे अंदर, 

जो धड़कता है, 

एक दिमाग़ है, 

जो सोचता है. 


तुम कहती हो, 

तुम पत्थर हो गई हो,

सच में हो गई हो, 

तो चोट पहुंचाओ किसी को,

सच में हो गई हो, 

तो नाचना बंद करो 

चक्करघिन्नी की तरह.


मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

७१०.मेहनत-कश आदमी

 


कवि,

तुम्हारी कविताओं में न छंद है,

न लय,न प्रवाह,

कोई उपमा भी नहीं,

फिर भी मुझे पसंद हैं तुम्हारी कविताएं,

क्योंकि उनमें हमेशा होता है 

कोई मेहनत-कश आदमी. 


शनिवार, 22 अप्रैल 2023

आप सभी के प्यार और समर्थन से मेरी हिंदी कविताओं की ई-बुक ‘इंद्रधनुष’ एमाज़ॉन पर लगातार कई श्रेणियों में बेस्टसेलर्स की सूची में नंबर 1 या 2 पर चल रही है और Hot New Releases में शामिल है.किताब नीचे दिए गए लिंक पर उपलब्ध है.

जिन साथियों ने किताब ख़रीदी है, उनसे अनुरोध है कि अपनी समीक्षा भी दें. धन्यवाद



मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

७०९. सुनो अभिनेता

 


नाटक ख़त्म हो गया है,

पर्दा गिर चुका है,

दर्शक जा चुके हैं,

पर वह अब भी 

अभिनय किए जा रहा है,

उसे तालियों का इंतज़ार है. 


सुनो अभिनेता,

तुम भी चले जाओ,

किसी ने ताली नहीं बजाई,

इसका यह मतलब नहीं

कि तुम्हारा अभिनय बुरा था. 


अगर तुम्हें यक़ीन है 

कि तुम्हारा अभिनय अच्छा था,

तो वह वाक़ई अच्छा था,

इससे ज़्यादा ज़रूरी 

और कुछ भी नहीं है. 



सुनो अभिनेता,

कभी-कभी दर्शकों को 

बहुत देर से समझ में  आता है 

कि उन्होंने वहां ताली नहीं बजाई,

जहाँ उन्हें बजाना चाहिए था. 


शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

७०८.रिश्तों की चादर

 



आओ उतार फेंके

यह रिश्तों की चादर, 

बहुत छीज गई है यह, 

एकाध जगह से फटी होती, 

तो रफ़ू हो सकती थी, 

अब बेमन से ही सही

इसे छोड़ना ही बेहतर है। 


बहुत कमज़ोर है 

यह रिश्तों की चादर, 

यहाँ से सिलो, 

तो वहाँ से फट जाती है, 

पर चाहूँ भी, 

तो बदल नहीं सकता इसे,

बाज़ार में मिलती जो नहीं है। 


कई बार रफ़ू करा लिया है,

पर अब तो यह 

वहाँ से भी फट गई है, 

जहाँ रफ़ू कराई थी, 

अभी ओढ़े रखना चाहता हूँ इसे, 

पर दर्जी कहता है, 

अब संभव नहीं है 

इसे रफ़ू करना। 


सब कहते हैं

ओढ़े रहो यह रिश्तों की चादर, 

पर यह तो वहाँ से भी फट गई है, 

जहाँ से रफ़ू हुई थी, 

आप ही कहिए, 

क्या अच्छा रहेगा, 

रफ़ू पर रफ़ू करवाना ? 


संभाल कर रखना 

यह रिश्तों की चादर, 

कहीं छेद न हो जाए इसमें, 

अच्छा नहीं लगता

साफ़ साबुत चादर में 

एक भी छेद हो जाना।


बुधवार, 12 अप्रैल 2023

 साथियों,


मेरी  हिंदी कविताओं की पहली ई-बुक ‘इंद्रधनुष’ एमाज़ॉन पर 21 अप्रैल, 2023 को प्रकाशित हो रही है.आपसे अनुरोध है कि onkarkedia@axl या 9868949110 पर Google Pay, PhonePe या किसी भी अन्य यू. पी. आई. एप्प से 99 रूपए का भुगतान करके ई-बुक के लिए  प्री-ऑर्डर करें. भुगतान का स्क्रीन-शॉट अपने ई-मेल ID के साथ इसी मोबाइल नंबर पर व्हाट्सप्प करें. 


धन्यवाद. 

ओंकार केडिया 




शनिवार, 8 अप्रैल 2023

७०७.उंगलियां

 


मेरी उंगली पकड़ो,

तो ध्यान से पकड़ना,

सारी एक-सी नहीं हैं,

तुम्हें पक्का पता होना चाहिए 

कि सही उंगली कौन-सी  है. 


कोई उंगली ऐसी है,

जो सही रास्ते पर ले चलेगी तुम्हें,

पहुंचा देगी तुम्हें तुम्हारी मंज़िल तक,

कोई ऐसी भी है,

जो छोड़ देगी तुम्हें 

घने जंगल या गहरे समंदर में. 


कोई उंगली तुम्हें 

उस वक़्त अंगूठा दिखा देगी,

जब तुम्हें सख़्त ज़रूरत होगी 

किसी सहारे की. 


मेरी दस उंगलियां हैं,

कभी कोई उंगली पकड़ो,

तो सही उंगली पकड़ना,

आंख मूंदकर कभी

कोई उंगली मत पकड़ना.