शुक्रवार, 31 मार्च 2023

७०६. क्या था,जो नहीं है

 


अब भी हम वैसे ही मिलते हैं,

जैसे पहले मिला करते थे,

वैसी ही बातें करते हैं,

जैसी पहले किया करते थे. 


बातों में वही शब्द,

होठों पर वही मुस्कुराहट,

सब कुछ वही है,

फिर भी मुझे क्यों लगता है

कि हम वैसे नहीं रहे,

जैसे कभी हुआ करते थे? 


हमारे बीच वह क्या है, 

जो कभी था,

पर अब नहीं है?

कुछ तो है,

जो मैं नहीं समझ पाया,

शायद तुमने समझा हो,

अगर हाँ, तो मुझे भी बताना. 


ज़रूरी नहीं होता 

एक साथ समझ जाना,

पर ज़रूरी होता है

जल्दी-से-जल्दी  

दोनों का जान जाना.


शुक्रवार, 24 मार्च 2023

७०५.ज़िद

 


हम एक ही रास्ते पर चले,

एक ही मंज़िल की ओर बढ़े,

पर साथ-साथ नहीं,

कोई वजह नहीं थी,

बस एक झिझक थी,

एक ज़िद थी 

कि हम अकेले भी चल सकते हैं. 


कभी तुम गिरे,

कभी मुझे चोट लगी, 

पर हम चुपचाप देखते रहे,

न किसी ने किसी को पुकारा,

न किसी ने कोई पहल की. 


अब जब मंज़िल दूर है,

वक़्त बचा ही नहीं, 

तो थोड़ी हलचल हुई है,

वह भी इशारों-इशारों में. 


कितनी अजीब बात है 

कि हम ख़ुद से छूट जाते हैं,

पर ज़िद और झिझक से 

चाहकर भी नहीं छूट पाते.



रविवार, 19 मार्च 2023

७०४. घुटनों का दर्द

 


पिता,

बहुत परेशान रहता था मैं 

अपने घुटनों के दर्द से,

पर जब से पता चला है 

कि ऐसा ही दर्द तुम्हें भी होता था, 

मुझे अच्छा लगने लगा है

अपने घुटनों का दर्द. 

***

पिता,

मैं भी तड़पता रहता हूँ 

घुटनों के दर्द से,

जैसे तुम तड़पते थे, 

तुम्हारी तो मजबूरी थी,

पर मैंने इसे चुना है. 

***

पिता,

जब से मैंने सुना है

कि मुझे घुटनों का दर्द 

तुमसे मिला है, 

मैं अक्सर महसूस करता हूँ 

अपने घुटनों में तुम्हारा धड़कना.  


शनिवार, 11 मार्च 2023

७०३. कविता

 






मीटिंग के बीच में 

अचानक मेरे दिमाग़ में 

एक कविता कौंध गई,

कविता ने कहा,

सब कुछ छोड़ो,

पहले मुझे लिखो,

मीटिंग तो बाद में भी हो जाएगी,

पर मैं चली गई,

तो लौटकर नहीं आऊंगी. 


मैं कविता से बहुत प्यार करता हूँ,

पर मुझे उससे एक शिकायत है,

किसी ज़िद्दी बच्चे की तरह 

जब कभी वह मचल जाती है,

तो सारे ज़रूरी काम छोड़कर 

उसी को देखना पड़ता है.



मंगलवार, 7 मार्च 2023

७०२. गुब्बारे



उसने होली में मुझ पर 

गुब्बारा कुछ ऐसे फेंका

कि उसका निशाना लग भी गया

और नहीं भी. 

**

वह जो खिड़की के पीछे से 

गुब्बारे फेंकती है,

डरती भी है,

निडर भी है. 

**

हमेशा की तरह 

इस बार भी होली में 

गुब्बारा नहीं लगा मुझे,

कहीं ऐसा तो नहीं 

कि तुम हर बार 

जान-बूझकर निशाना चूक जाती हो. 

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तुमने मुझ पर गुब्बारा फेंका,

मैं सिर से पाँव तक भीग गया,

फिर भी न जाने क्यों 

मुझे ऐसा लगा 

कि गुब्बारे में पानी कम था. 

**

इस बार होली में 

अजीब नज़ारा देखा,

गुब्बारा एक चला,

पर घायल कई हो गए.


शुक्रवार, 3 मार्च 2023

७०१. होली पर कुछ प्रेम कविताएं

 


पिछली होली में तुमने 

जो रंग डाला था,

अभी उतरा नहीं है,

जो सबको दिखता है,

तुम्हें क्यों नहीं दिखता?

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इस बार होली में गुझिया बनाओ,

तो उसमें चीनी मत डालना,

डालो, तो ख़ुद मत खिलाना,

मुझे मीठा पसंद है,

पर इतना ज़्यादा भी नहीं. 

**

मैं तुम पर रंग कैसे डालूं,

तुम्हें एलर्जी हो गई तो?

मैं तुम पर पानी कैसे डालूं,

तुम्हें ज़ुकाम हो गया तो?

सोचता हूँ, कुछ भी न डालूं,

पर तुम्हें ग़लतफ़हमी हो गई तो?

**

इस बार होली में 

कोई गहरा रंग लगाना,

वह रंग ही क्या,

जो दिवाली तक उतर जाए?