रविवार, 29 जनवरी 2023

६९५.लाठी

 


उसे बहुत पसंद है 

अपनी लाठी,

एक वही है,

जो उसके पास रहती है, 

वरना उसके साथ से   

बड़ी जल्दी ऊब जाते हैं 

सब-के-सब. 

**

तुम्हें लगता है 

कि बिना लाठी के तुम 

चल नहीं पाओगे,

पर एक बार अपनी लाठी 

ख़ुद बन के तो देखो,

शायद किसी और लाठी की तुम्हें 

ज़रूरत ही न पड़े. 

**

मेरी लाठी मुझे 

सहारा तो देती है,

पर मुझे अच्छा नहीं लगता,

वह जब चलती है,

तो शोर बहुत करती है. 

**

उसने इतना बोझ डाल दिया 

कि लाठी ही टूट गई,

जिन्हें सहारा चाहिए,

उन्हें अपना वज़न 

कम रखना पड़ता है.


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 31 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. एक बार अपनी लाठी
    ख़ुद बन के तो देखो,
    शायद किसी और लाठी की तुम्हें
    ज़रूरत ही न पड़े.
    अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  3. वाह! लाठी एक सीख अनेक, जीवन को देखने की नज़र गहरी हो तो हर शै कुछ न कुछ कहती हुई सी लगती है

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  4. मेरी लाठी मुझे

    सहारा तो देती है,

    पर मुझे अच्छा नहीं लगता,

    वह जब चलती है,

    तो शोर बहुत करती है.
    सहारा देने वाली लाठियां जब शोर करें तो अच्छा कैसे लगेगा।
    अक्सर करती है आजकल शोर सहारा देने वाली लाठियां भूल जाती हैं कि उन्हें सहारा देने लायक बनाया है किसी ने ।

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  5. एक बार अपनी लाठी

    ख़ुद बन के तो देखो,

    शायद किसी और लाठी की तुम्हें

    ज़रूरत ही न पड़े.
    उम्दा प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. लाठी की ज़रूरत पड़ने पर वज़न कम कैसे करें ?
    इशारा शायद दूसरों पर बोझ बनने से है ।।

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