शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

६८१.रिश्ते

 



मेरे रीसायकल बिन में 

बहुत से टूटे हुए रिश्ते हैं,

कुछ मैंने तोड़ दिए थे,

कुछ ग़लती से डिलीट हो गए. 


अब रीसायकल बिन में जगह नहीं है,

सोचता हूँ, हर रिश्ते को ध्यान से देखूँ,

कुछ तो ऐसे ज़रूर मिलेंगे,

जिनका टूट जाना ठीक नहीं था, 

चाहता हूँ, उन्हें रिस्टोर कर दूँ. 


मुश्किल यह है कि 

बाक़ियों का क्या करूँ,

सदा के लिए उन्हें कैसे हटाऊँ,

क्या आप कोई ऐसी कमांड जानते हैं,

जिससे ऐसा करना संभव हो?


शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

६८०.उँगलियाँ

 


मेरे बालों में धीरे-धीरे 

टहल रही हैं कुछ उँगलियाँ,

अच्छी लगती हैं 

नर्म-नाज़ुक,जानी-पहचानी उँगलियाँ. 

मैं उनसे कहता हूँ,

ज़रा देर तक टहलो,

अच्छा होता है सेहत के लिए 

लम्बा टहलना. 

***

अब वे उँगलियाँ 

पहले-सी नर्म-नाज़ुक नहीं रहीं,

मेरे बाल भी घने नहीं रहे,

मगर अच्छी लगती हैं,

जब वे घूमती हैं

मेरे कम होते बालों में,

उँगलियों को भी अच्छा लगता है,

मेरे बालों में टहलना. 

***

अब नहीं रहीं वे उँगलियाँ,

जो अधिकार से टहला करती थीं

मेरे घने काले बालों में,

अच्छा ही हुआ 

कि अब वे बाल भी नहीं रहे. 


रविवार, 13 नवंबर 2022

६७९.आइसक्रीम

 



मैंने पिघलने दिया ज़िंदगी को

आइसक्रीम की तरह,

पर मैं भूल गया 

कि आइसक्रीम नहीं है ज़िन्दगी. 

दुबारा जम सकती है 

पिघली हुई आइसक्रीम,

पर ऐसा कोई फ़्रीज़र नहीं,

जिसमें फिर से जम जाय 

पिघली हुई ज़िन्दगी. 

**

तुम आइसक्रीम की तरह पिघलती रही,

मैं गुलाब-जामुन की तरह जमा रहा,

फिर भी आराम से कट गई ज़िन्दगी,

साथ रहने के लिए ज़रूरी नहीं है,

दोनों का जमना, दोनों का पिघलना. 

**

इतनी देर नहीं चलती 

आइसक्रीम और ज़िन्दगी 

कि सामने रखी हो

और हम सोचते रहें 

कि इसका करना क्या है. 

***

उसने मुझे आइसक्रीम दी,

मैं रेसिपी पूछता रहा,

कितना बेवक़ूफ़ था मैं,

इतना भी नहीं सोचा 

कि रेसिपी नहीं पिघलती,

आइसक्रीम पिघल जाती है. 

**

हम दोनों ऐसे मिले,

जैसे आइसक्रीम के दो स्कूप,

अच्छा रहा मिलन,

पर और अच्छा होता 

अगर मैं थोड़ा कम पिघलता,

तुम थोड़ा ज़्यादा. 

***

आइसक्रीम जैसी बनो,

मीठी और मुलायम,

पर ऐसी भी मत बनो 

कि थोड़ी सी आंच लगे 

और पिघल जाओ.


बुधवार, 9 नवंबर 2022

६७८.इतवार

 


तुम जल्दी-जल्दी आया करो, 

देर से जाया करो,  

जब तुम आती हो,

तो लगता है,

एक लम्बा सप्ताह ख़त्म हुआ,

जब तुम जाती हो,

तो लगता है,

इतवार बीत गया.

***

आज दिल उदास है,

दिन ऊबाऊ है,

तुम आ जाओ अचानक,

जैसे किसी दिन 

सुबह-सुबह याद आए 

कि आज इतवार है. 

***

अबके जब मिलो,

तो फ़ुर्सत से मिलना,

भागते-दौड़ते, 

चेहरे पर तनाव लिए 

सोमवार की तरह नहीं,

इतवार की तरह मिलना. 

शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

६७७. पुराने ख़त

 


पिता,

तुमने जो ख़त लिखे थे,

मैंने कभी सहेज कर रखे ही नहीं,

सोचा, क्या रखना उन ख़तों को,

जो चले आते हैं हर तीसरे दिन. 


कितना कबाड़ रहता था 

मेरी संदूकों और अलमारियों में,

जगह नहीं थी तो बस 

तुम्हारे ख़तों के लिए. 


इतने अरसे बाद याद नहीं 

कि तुमने  ख़तों में लिखा क्या था,

मन करता है उन्हें दुबारा पढ़ने का,

पर मैंने तो कब का फाड़ दिया उन्हें. 


काश कि तुम्हारे ख़त 

किसी ‘रीसायकल बिन’ में पड़े होते,

जहाँ से मैं उन्हें ‘रिस्टोर’ कर सकता 

और रख सकता कहीं किसी ‘क्लाउड’ पर.


मंगलवार, 1 नवंबर 2022

६७६. कहाँ गया तुम्हारी आँखों का पानी?

 

(पिछले रविवार की शाम गुजरात के मोरबी में एक पुल टूटने से कम-से-कम 135 लोग मारे गए. इसी घटना से प्रेरित यह कविता.चित्र पीटीआई से साभार )




यहाँ का पानी शांत है,

पता ही नहीं चलता

कि पिछले दिनों यहाँ

कोई पुल टूटा था.


पानी को देखकर कहना मुश्किल है

कि उस शाम इतने सारे लोग 

सिर्फ़ पानी देखने वहाँ आए थे,

उनका कोई ग़लत इरादा नहीं था.


कई आटा गूंधकर आए थे,

कई सब्ज़ी काटकर आए थे,

कि वापसी में देर हो जाएगी,

उन्होंने कभी सोचा नहीं था

कि वे लौट नहीं पाएंगे.


पानी, इतने लोगों को लीलकर भी

तुम इतने शांत कैसे रह सकते हो,

तुम्हारा तो रंग भी नहीं बदला,

कहाँ गया तुम्हारी आँखों का पानी?