गुरुवार, 4 मार्च 2021

५४१. पेड़ काटनेवाले



पेड़ कट रहे हैं,

कट रहे हैं काटनेवाले,

पर नहीं सुनी उन्होंने 

ख़ुद के कटने की आवाज़,

महसूस नहीं किया थोड़ा भी 

ख़ुद के कटने का दर्द.


पागल हो जाते हैं वे 

जिनके पास कुल्हाड़ियाँ होती हैं,

कुछ नहीं सुनता उन्हें,

कुछ महसूस नहीं होता. 


एक दिन जब पेड़

धराशाई हो जाएंगे

और बंद हो जाएंगी 

कटने की आवाज़ें,

तब महसूस होगा काटनेवालों को 

कि उन्होंने पेड़ों को नहीं 

ख़ुद को काटा था.


7 टिप्‍पणियां:

  1. सच , हम खुद को ही काट रहे । गहन अभिव्यक्ति ।

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  2. पर्यावरण के प्रति सचेत करती अनोखी कृति..

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  3. प्रकृति का अनुचित दोहन मानव के लिए कष्टदायक है फिर भी इसकी अनदेखी करना और दोहन करते जाना स्वार्थपरता तो है ही। चिंतनपरक सृजन ।

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