बुधवार, 30 दिसंबर 2020

५२०. साल परिवर्तन



यह सच है 

कि 2020 ने बहुत परेशान किया,

पर उसका साथ तो रहा ही है,

जिसके साथ रहे हों,

उसका जाना बुरा तो लगता ही है,

वह कितना ही बुरा क्यों न हो.

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पुराने को जाना ही है,

नए को आना ही है,

हो सकता है, जो जा रहा हो,

बहुत अच्छा हो,

हो सकता है, जो आ रहा हो,

बहुत बुरा हो,

पर हमारे वश में क्या है?

न हम जानेवाले को रोक सकते हैं,

न आनेवाले को,

हम बस दर्शक हैं,

दर्शक के सिवा कुछ भी नहीं.

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नया साल आया भी नहीं 

कि तुम जश्न मनाने लगे,

लगता है, तुम्हें यक़ीन है 

कि यह साल भी तकलीफ़ देगा 

बीते साल की तरह.


सोमवार, 28 दिसंबर 2020

५१९. सोचा-समझा प्यार



तुमने तो कह दिया 

कि तुम्हें मुझसे प्यार है,

पर मुझे अभी तय करना है.


कई विकल्प हैं मेरे पास,

कहाँ नफ़ा ज़्यादा है,

कहाँ नुकसान कम है,

मुझे आकलन करना है.


जब हिसाब हो जाएगा,

पड़ताल पूरी हो जाएगी,

तभी बता सकूंगा तुम्हें 

कि मुझे तुमसे प्यार है या नहीं.


लैला-मजनूँ,शीरीं-फरहाद,

हीर-रांझा, रोमियो-जूलियट,

कहानियों की बातें है,

अब न अँधा प्यार है,

न पहली दृष्टि का प्यार.


बदले समय में ज़रूरी है 

कि हम सोच-समझकर 

नफ़ा-नुकसान देखकर 

प्यार करना सीख लें.

शनिवार, 26 दिसंबर 2020

५१८.हँसना ज़रूरी है


हँसो कि हँसना ज़रूरी है.


बाहर नहीं, तो अन्दर ही सही,

खुले में नहीं,तो बंद कमरे में सही,

कहीं भी सही,पर हँसना ज़रूरी है.


दिन में नहीं,तो रात में सही,

सुबह को नहीं,तो शाम को सही,

कभी भी सही,पर हँसना ज़रूरी है.


ज़ोर से नहीं, तो धीरे से सही,

धीरे से नहीं,तो बेआवाज़ ही सही,

कैसे भी सही,पर हँसना ज़रूरी है.


अभी अवसर है, जी भर के हँस लो,

कम-से-कम अकेले में, बेआवाज़ हंसने पर

अभी कोई पाबंदी नहीं है.

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

५१७. वह स्त्री




बचपन में पिता ने कहा,

'चुप रहो',

जवानी में पति ने कहा,

'चुप रहो',

बुढ़ापे में बेटे ने कहा,

'चुप रहो',

हर किसी ने कहा,

'चुप रहो',

उसके बोलने का समय 

कभी आया ही नहीं.


एक दिन वह मर गई,

किसी ने नहीं पूछा उससे, 

'तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?'

कोई पूछ भी लेता,

तो वह क्या जवाब देती,

उसे तो बोलना आता ही नहीं था. 


मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

५१६.विधवा से



ओ विधवा,

तुमने मेहँदी लगाना,

नाखून रंगना,

माँग सवारना,

बिंदी लगाना,

रंगीन कपड़े पहनना,

सजना, सवरना -

सब छोड़ दिया, 

ठीक नहीं किया,

पर तुमने बहुत ग़लत किया 

कि हँसना छोड़ दिया.

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

५१५. सूर्यास्त


बस थोड़ी देर में 

शाम होने को है,

उतर रहा है झील में 

लहूलुहान सूरज,

बेसब्री से देख रहे हैं 

किनारे पर खड़े लोग.


मैं सोचता हूँ,

किसी को डूबते हुए देखना 

इतना अच्छा क्यों लगता है.

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

५१४. मछुआरे से


मछुआरे,

तुम मझधार में गए थे,

तुम्हें तो लौट आना था,

पर तुम उस पार चले गए.

अब नहीं लौटोगे तुम इस पार,

अगर मुझे तुमसे मिलना है,

तो मुझे भी जाना होगा उस पार 

और अगर मैं गया,

तो मैं भी नहीं लौटूंगा कभी इस पार.

**

मछुआरे,

तुम मछली पकड़ने गए थे 

गहरे समुद्र में,

हर बार तो तुम लौट आते थे,

इस बार कौन से मोती मिले 

कि तुम लौटे ही नहीं?

**

मछुआरे,

इस बार मैं भी चलूँगा तुम्हारे साथ,

दूर समुद्र में जाएंगे,

ख़ूब मछलियाँ पकड़ेंगे,

पर मुझे तैरना नहीं आता,

तुम्हें बचाना आता है न?

शनिवार, 12 दिसंबर 2020

५१३. गाँव वापसी


अब वे रास्ते नहीं रहे,

जिन पर मैं चलता था,

पक्की सड़कें हैं,

जिन पर बैलगाड़ियाँ नहीं,

मोटरगाड़ियाँ दौड़ती हैं,

पैडल वाले रिक्शे नहीं,

अब बैटरी-रिक्शे चलते हैं,

पक्के मकान उग आए हैं

खुले मैदानों में,

गुम हैं वे ग़रीब से होटल 

जिनमें चाय-समोसे बनते थे,

काठ और टीन के देवालय की जगह 

अब भव्य मंदिर खड़ा है,

अंग्रेज़ी बोलते बच्चे अब 

सर्र से निकल जाते हैं बगल से,

हाँ,अब भी वहीं है वह स्कूल,

जिसमें मैं पढ़ता था,

पर मुझे पहचानता नहीं,

जाता हूँ, तो पूछता है,

वह कौन सा साल था,

जब तुम यहाँ पढ़ते थे?

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

५१२. मास्क



वैसे तो हम सब 

हमेशा लगाते थे,

इन दिनों तो बस 

दिखा रहे हैं.

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जो सामने था,

वही तो मुखौटा था,

अब जो चढ़ा है,

मुखौटे पर मास्क नहीं,

तो और क्या है?

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आँखों पर क्यों चढ़ा रखा है?

मुँह और नाक ही काफ़ी था,

मास्क का बहाना बनाकर 

कम-से-कम नज़रें तो मत चुराओ.

रविवार, 6 दिसंबर 2020

५११. 2020



बहुत तड़पाया तुमने,

बहुत रुलाया,

मजबूर किया 

घर में क़ैद रहने को,

मास्क लगवाए 

मुस्कराते चेहरों पर,

दूरी पैदा की 

अपनों के बीच.


कितनों को ला खड़ा किया 

सड़क पर तुमने,

कितनों को भूख से 

बेहाल कर दिया,

कितनों को छीन लिया 

हमेशा-हमेशा के लिए.


देखो,

दिसंबर आ गया है,

अब तुम्हें जाना ही होगा,

कितना भी जालिम क्यों न हो कोई,

जाना ही होता है उसे कभी-न-कभी.

बुधवार, 2 दिसंबर 2020

५१०. कोरोना की वापसी



बड़ी मुश्किल से भगाया था तुमको,

पर तुम फिर लौट आए,

पहले जो तबाही मचाई थी,

उससे जी नहीं भरा तुम्हारा?

थोड़ी सी भी शर्म बची हो,

तो वापस लौट जाओ,

जिन्हें धक्के देकर निकाला जाता है,

वे इस तरह लौटा नहीं करते.

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एक बार चला गया है,

पर वापस भी आ सकता है,

कोई राहगीर नहीं,

चोर उचक्का है,

उसे तुम्हारी अनुमति नहीं,

असावधानी का इंतज़ार है.