सोमवार, 30 नवंबर 2020

५०९. कोरोना में लाशें

लाइन में लगे-लगे 

थक गई हैं लाशें,

परेशान हैं,

जलने के इंतज़ार में हैं,

लाशें सोचती हैं 

कि मरने में उतनी मुश्किल नहीं हुई,

जितनी जलने में हो रही है. 

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लाशें बेताब हैं

अस्पताल से छुट्टी के लिए,

उन्हें डर है 

कि मरीज़ उन्हें देखकर 

डर न जायँ,

बेमौत न मर जायँ.

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चिता पर रखी लाश 

जल्दी जल जाना चाहती है,

उसे उन लाशों की चिंता है,

जो अपनी बारी के इंतज़ार में हैं.

शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

५०८. मास्क

राग दिल्ली वेबसाइट(https://www.raagdelhi.com/) पर प्रकाशित मेरी कविताएँ 



मास्क – 1


तुम्हारे मुँह और नाक पर

मास्क लगा है,

पर तुम बोल सकते हो,

बोलना मत छोड़ो,

जब तक कि तुम्हें

पूरी तरह चुप न करा दिया जाय.

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मास्क – 2


बहुत भोले हैं हम,

कहते हैं, मास्क के चलते  

लोग पहचाने नहीं जा रहे,

जैसे कि बिना मास्क के

पहचाने जा रहे थे.

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मास्क – 3


मास्क लगाया ही है,

तो पूरी तरह लगाओ,

जब खुल के छिपा रहे हो,

तो आधा-अधूरा क्या छिपाना?

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मास्क – 4


सभी घूम रहे हैं मास्क लगाकर,

सभी एक से लगते हैं,

वैसे भी क्या फ़र्क है

आदमी और आदमी में?

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बुधवार, 25 नवंबर 2020

५०७. दो गज की दूरी



दो गज की दूरी रखिए,

सुरक्षित रहिए,

पर याद रहे 

कि दिलों के क़रीब होने पर 

कोरोना के दिनों में भी 

कोई पाबंदी नहीं है. 

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थोड़ी दूरी बनाए रखिए,

बहुत ज़रूरी है इन दिनों,

पर इतनी दूर मत जाइए 

कि दिखाई ही न दे

चेहरों पर फैली उदासी. 

        **

दूरी बनाई,

साबुन लगाया,

सेनेटाइज़र छिड़का,

पास नहीं फटका कोरोना,

पर बच नहीं सका मैं 

पुरानी कड़वी यादों से.  

  



शनिवार, 21 नवंबर 2020

५०६. कोरोना में दूरी



इन दिनों ज़रूरी है 

दूरी बनाए रखना,

थोड़ी नहीं,ज़्यादा.


इन दिनों ज़रूरी है 

किसी के गले न लगना,

किसी से हाथ न मिलाना, 

किसी के पास न जाना.


इन दिनों ज़रूरी है 

दिलों का क़रीब होना,

इतना कि ज़रा सा भी 

फ़ासला न रहे.


इन दिनों ज़रूरी है 

दूसरों के काम आना,

उनका दर्द महसूस करना 

और यह सब संभव है 

दो गज की दूरी रखकर भी.


बुधवार, 18 नवंबर 2020

५०५. गूँगा

मुँह में ज़बान न होने का मतलब 

गूँगा होना नहीं है.

हो सकता है,

किसी के मुँह में ज़बान न हो,

पर वह आँखों से बोलता हो.

जो बोलता है,

वह गूँगा नहीं है,

भले वह आँखों से बोले.

वह आदमी ज़रूर गूँगा है,

जो बोल तो सकता है,

पर कुछ बोलता नहीं,

न ज़बान से, न आँखों से.

सोमवार, 16 नवंबर 2020

५०४. बेसुरा गीत



एक परिंदा कहीं से 

उड़ता हुआ आया,

गाने लगा कोई बेसुरा-सा गीत,

नाचने लगा कोई बेढंगा-सा नाच,

पर मुग्ध हो गई डाली,

झूमने लगी ख़ुशी से.


थोड़ी देर में उड़ जाएगा परिंदा,

बैठ जाएगा कहीं और जाकर,

पर झूमती रहेगी वह डाली,

जिस पर नृत्य किया था परिंदे ने 

और मन की गहराइयों से गाया था 

एक बेसुरा-सा गीत.


शनिवार, 14 नवंबर 2020

५०३. इस साल दिवाली में



इस साल दिवाली में 

बुझ गया एक दीया,

जिसे बुझना नहीं था.


उसमें तेल पूरा था,

उसकी बाती ठीक थी,

हवाएं भी ख़ामोश थीं,

फिर भी वह बुझ गया.


इस तरह असमय 

जब बुझ जाता है 

कोई जगमगाता दीया,

तो ऐसा घना अँधेरा छाता है

कि सैकड़ों दीये मिलकर भी 

उसे दूर नहीं कर सकते.

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

५०२.मौत के बाद


वह कौन है,

जिसकी आवाज़ 

हर ओर सुनाई देती है,

जिसकी हँसी

हमेशा कानों में गूंजती है?

कई दिन बीत गए,

जिसे विदा किए,

पर जिसकी सूरत 

हर तरफ़ दिखाई पड़ती है.


यह कैसा भ्रम है

कि वह दिखता भी है 

और नहीं भी,

वह वाचाल भी है 

और चुप भी,

वह है भी 

और नहीं भी.


असल में वह नहीं है,

पर अपने न होने में 

वह पहले से कहीं ज़्यादा है,

जैसे कि वह पूरा ज़िन्दा हुआ हो 

अपनी मौत के बाद.


सोमवार, 9 नवंबर 2020

५०१. कलाकार से

सुनो कलाकार,

गली-गली घूमकर 

चिल्लाने से क्या फ़ायदा,

यहाँ सभी बहरे हैं,

कोई नहीं ख़रीदेगा

तुम्हारा सामान,

कोई नहीं पहचानेगा 

तुम्हारा हुनर.


अगर चाहते हो 

कि तुम्हारा सामान बिके,

तुम्हारे हुनर की क़द्र हो,

तो गली-गली घूमना छोड़ो,

चुपचाप घर बैठो.


यह बात गांठ बाँध लो

कि पुकारकर बेचने से 

अनमोल चीज़ की भी 

कोई क़ीमत नहीं होती.

शनिवार, 7 नवंबर 2020

५००. सीखने का समय



बहुत हो गया अब,

छोड़ो कॉपी-किताब,

फेंक दो चाक-पेंसिल,

बंद करो भागना अब 

घंटी की आवाज़ पर.


आओ, ज़रा खुले में चलें,

तितलियों के पीछे दौड़ें,

बंद आँखों पर महसूस करें,

बारिश की गिरती बूँदें.


देखो, सूर्यास्त के समय 

कैसे रंग बदलता है आकाश,

कैसे मौसम बदलते ही

रूप बदलता है पेड़.


चलो, नदी के किनारे चलें,

संगीत सुनें बहते पानी का,

कंकड़ फेंक कर देखें,

कैसे उछलता है पानी.


चलो, ज़ोर से दौड़ें

ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर,

छाले पड़ जायँ पाँवों में,

छिल जायँ घुटने.


उतार फेंकें बोझ,

आज खुलकर हँस लें,

बर्बाद कर दिया हमने 

बहुत सारा वक़्त,

अब सीखने का समय है. 

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

४९९. चाँदनी



क्या आपने चाँद की ओर ताकते हुए 

कभी चाँदनी में नहाकर देखा है?

लगता है किसी छोटे से फव्वारे से 

ढेर सारी रौशनी बरस रही हो.


अचानक चाँद बादलों में छिप जाता है,

अतृप्ति का भाव मन में जगाता है,

पर थोड़ी देर में बादल छंट जाते हैं,

दूधिया चाँदनी फिर से बरसने लगती है .


कभी घर से निकलकर देखो

या खुली छत पर जाकर देखो,

अभी तो चाँद आकाश में है,

नहा लो जी भर के चाँदनी में,

फिर न जाने कितना इंतज़ार करना पड़े.


रातें अमावस की भी होती हैं

और कभी-कभी ऐसा भी होता है 

कि रात तो पूनम की होती है,

पर ज़िद्दी बादल चाँद को उगने नहीं देते.

सोमवार, 2 नवंबर 2020

४९८. पटरियाँ

 Rails, Soft, Gleise, Railway

रेलगाड़ी की पटरियाँ

चलती चली जाती हैं,

किसी पटरी से मिलती हैं,

तो किसी से बिछड़ती हैं,

कभी जंगलों से गुज़रती हैं,

तो कभी रेगिस्तानों से,

कभी चट्टानों से,

तो कभी मैदानों से.

कभी सख्त ज़मीन पर चलती हैं,

तो कभी मुलायम मिट्टी पर,

आख़िर एक जगह पहुँचकर

रुक जाती हैं रेल की पटरियाँ,

जीवन भी ऐसा ही है,

रेल की पटरियों जैसा.