शनिवार, 5 सितंबर 2020

४७७.तीर

दशरथ ने चलाया है 

शब्दभेदी वाण,

मारा गया है श्रवण,

अनाथ हो गए हैं 

उसके अंधे माँ-बाप.


अफ़सोस है दशरथ को,

अयोध्यापति है वह,

पर उसके वश में नहीं है 

नुकसान की भरपाई करना.


मैं समझ नहीं पाता 

कि जिनके निशाने अचूक होते हैं,

वे किस अधिकार से 

बिना सोचे समझे 

कहीं भी तीर चला देते हैं?

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 06 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. शक्ति का दुरपयोग करते हैं ऐसे लोग ...
    बहुत सुन्दर सृजन।

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  4. बहुत बढ़िया ।आदरणीय शुभकामनाएँ ।

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  5. शब्दों के घाव बहुत गहरे होते हैं। सारगर्भित रचना।

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  6. गहन प्रहार करती सारगर्भित रचना।

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  7. मैं समझ नहीं पाता

    कि जिनके निशाने अचूक होते हैं,

    वे किस अधिकार से

    बिना सोचे समझे

    कहीं भी तीर चला देते हैं?

    व्यंग्य बहुत ही तीखा है...

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