शनिवार, 20 जून 2020

४४९. शहर से

Delhi, India, Landmark, Architecture

बड़ी उम्मीद से आया था 
मैं तुम्हारे पास कभी,
बहुत रोका था गाँव ने,
वहां के खेतों,बगीचों ने,
वहां के फूलों, पत्तों ने,
दूर तक पुकारता रहा था कोई,
पर मैं आ गया था अनसुना करके.

मेरे क़दमों में उत्साह था,
मेरी आँखों पर सपनों की पट्टी थी,
बड़ी अच्छी लग रही थी दूर से मुझे 
तुम्हारी चौंधियाती रौशनी.

पर तुमने सब कुछ लूट लिया,
दर-दर का भिखारी बना दिया,
छीन लिया मुझसे मेरा 
आत्म-विश्वास,आत्म-सम्मान.

कम-से-कम अब इतना तो करो
कि मुझे वापस गाँव जाने दो,
वादा है,इस बार गया, 
तो कभी तुम्हारा मुँह नहीं देखूँगा.

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर।
    योगदिवस और पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।

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  2. बहुत ही उम्दा लिखावट ,बहुत आसान भाषा में समझा देती है आपकी ये ब्लॉग धनयवाद इसी तरह लिखते रहिये और हमे सही और सटीक जानकारी देते रहे ,आपका दिल से धन्यवाद् सर
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  3. हर मजदूर के मन की बात लिख दी आपने ...
    मजबूरी बेबसी .... काश सब दूर हो ...

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  4. बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी सृजन ।

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