मंगलवार, 30 जून 2020

४५२. मौत से

हज़ारों मील के सफ़र का 
एक बड़ा हिस्सा 
तय कर लिया है मैंने.

बदन थक कर चूर है,
पाँव छालों से भरे हैं,
पेट अकड़ रहा है भूख से,
पर अभी दूर है गाँव.

मैं चलता रहूँगा,
जब तक सांस चलेगी,
मौत, तुम्हें उसकी कसम,
जो तुम्हें सबसे प्रिय है,
मेरे गाँव पहुँचने से पहले 
मेरे पास मत आना.

शनिवार, 27 जून 2020

४५१. कोयल से

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कोयल, 
तुम किसी भी समय 
क्यों गाने लगती हो?
इस भरपूर उदासी में,
जब सब घरों में बंद हैं,
तुम्हारी ख़ुशी का राज़ क्या है?
ज़रा हमें भी बताओ,
हम भी भर लें 
अपनी ज़िन्दगी में 
थोड़ी-सी ख़ुशी,
हम भी गा लें
तुम्हारे साथ-साथ,
तुम्हारे जितना नहीं,
तो थोड़ा-सा ही सही.

मंगलवार, 23 जून 2020

४५०. मत लौटना

'रागदिल्ली' वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी कविता: 

बेटे,
बहुत राह देखी तुम्हारी,
बहुत याद किया तुम्हें,
अब आओ, तो यहीं रहना....

शनिवार, 20 जून 2020

४४९. शहर से

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बड़ी उम्मीद से आया था 
मैं तुम्हारे पास कभी,
बहुत रोका था गाँव ने,
वहां के खेतों,बगीचों ने,
वहां के फूलों, पत्तों ने,
दूर तक पुकारता रहा था कोई,
पर मैं आ गया था अनसुना करके.

मेरे क़दमों में उत्साह था,
मेरी आँखों पर सपनों की पट्टी थी,
बड़ी अच्छी लग रही थी दूर से मुझे 
तुम्हारी चौंधियाती रौशनी.

पर तुमने सब कुछ लूट लिया,
दर-दर का भिखारी बना दिया,
छीन लिया मुझसे मेरा 
आत्म-विश्वास,आत्म-सम्मान.

कम-से-कम अब इतना तो करो
कि मुझे वापस गाँव जाने दो,
वादा है,इस बार गया, 
तो कभी तुम्हारा मुँह नहीं देखूँगा.

गुरुवार, 18 जून 2020

४४८.अपने गाँव से

मेरे गाँव,
मैं वापस लौट रहा हूँ.

सिर पर गठरी उठाए,
छालों भरे पाँवों से 
थके बदन को घसीटते 
मैं निकल पड़ा हूँ 
सैकड़ों मील की यात्रा पर.

गिरते-पड़ते, ठोकरें खाते 
लहूलुहान पांव लिए 
शायद पहुँच जाऊं तुम तक.

अगर पहुँच जाऊं,
तो दुत्कारना नहीं मुझे,
माफ़ कर देना वह पाप,
जो तुम्हें छोड़कर मैंने किया था. 

अगर पूरी न कर पाऊँ यात्रा,
तो भी स्वीकार कर लेना मुझे,
मुझे फूल बनकर खिलना है ,
ख़ुश्बू बनकर तुम्हारी 
हवाओं में बिखरना है .


सोमवार, 15 जून 2020

४४७. मंज़िल

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न जाने कहाँ से चले आ रहे हैं 
इतने सारे थके-थके कदम,
भूखे पेट का बोझ लादे.
सामान का बोझ कम हो सकता है,
पर भूखे पेट का कैसे कम हो?

मीलों से चले आ रहे हैं ये कदम,
मीलों तक चलना है इन्हें,
उन्हीं घरों तक पहुँचना है,
जहाँ से निकले थे ये कभी,
उन्हीं गलियों तक पहुँचना है,
जो इन्होंने छोड़ी थीं कभी.

कोरोना ने समझाया है इन्हें
कि जिसे मंज़िल समझा था,
वह तो बस एक छलावा था,
मंज़िल तो इनकी वहीं थी,
जहाँ से ये कभी चले थे.



शुक्रवार, 12 जून 2020

४४६. पुरानी दुनिया

Coronavirus, Virus, Mask, Corona

सड़कें सूनी हैं,
पक्षी ख़ामोश हैं,
हवाएँ लौट रही हैं
बंद दरवाज़ों से टकराकर.

सूरज उगता है,
मारा-मारा फिरता है
सुबह से शाम तक,
फिर डूब जाता है.

मुँह पर पट्टी बंधी है,
पहले की तरह बोलना 
अब संभव नहीं,
किसी को गले लगाना 
ख़तरे से ख़ाली नहीं.

अब हर आदमी 
शक के घेरे में है,
अब हर चीज़ से 
डर लगता है.

कोरोना ने बदल दी है 
हम सब की दुनिया,
जी चाहता है लौट जाएँ
अब उसी पुरानी
बेतरतीब दुनिया में.

मंगलवार, 9 जून 2020

४४५. जाले

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वह जो पहले अच्छा नहीं लगता था,
अब बहुत अच्छा लगता है,
वह जिसे देखना भी नहीं चाहता था,
अब उसे गले लगाना चाहता हूँ.

घर में रहकर सोचता रहा मैं 
कि क्यों अच्छा नहीं  लगता था वह,
क्यों नहीं करता था मन उसे देखने का,
पर वज़ह कोई मिली ही नहीं.

बहुत नुकसान किया लॉकडाउन ने,
पर हटा दिए उसने बहुत सारे जाले.

रविवार, 7 जून 2020

४४४. बदहवास युग

Scrabble, Words, Wood, Wooden, Lockdown

धडकनें बढ़ रही हैं,
मन परेशान है,
क्या शुरू होने वाला है 
पहले सा पागलपन,
भागना बेमतलब 
इधर से उधर?

क्या ख़ाली सड़कों से 
उड़ जाएंगी चिड़ियाँ,
क्या उनकी जगह ले लेंगे 
रेंगते वाहन, घिसटते पांव?

क्या यूँ ही उगेगा सूरज,
यूँ ही डूब जाएगा,
क्या यूँ ही खिलेंगे फूल 
और यूँ ही मुरझा जाएंगे?

क्या लौट जाएंगे हम फिर से 
उसी बदहवास युग में,
क्या कुछ भी नहीं सीखेंगे हम
लॉकडाउन के दिनों से?

शुक्रवार, 5 जून 2020

४४३.सेहत

मैं निकल पड़ा हूँ 
ख़ाली पेट,पैदल 
हज़ारों मील की यात्रा पर,
मुझे गाँव पहुँचना है.

मैंने सुना है 
कि चलना सेहत के लिए 
बहुत अच्छा है,
यह भी सुना है 
कि व्रत रखना 
पेट के लिए अच्छा है.

शायद इस यात्रा में 
मैं गाँव पहुँच जाऊँ,
मेरी सेहत भी सुधर जाए,
आप ही कहिए
मैं सही सोच रहा हूँ न?

बुधवार, 3 जून 2020

४४२. विचारों से

A, I, Ai, Anatomy

विचारों,
घुस आओ अन्दर,
मैं कब से इंतज़ार में हूँ,
इतनी फ़ुर्सत में हूँ 
कि तुम्हारा स्वागत कर सकूँ,
देख सकूँ कि तुममें से 
किसे बोया जा सकता है,
सींचा जा सकता है,
बनाया जा सकता है 
एक हरा-भरा दरख़्त.

विचारों,
हिचको मत,
अन्दर आ जाओ,
जो लक्ष्मण-रेखा मैंने 
घर के बाहर खींची है,
वह तुम्हारे लिए नहीं है. 

मंगलवार, 2 जून 2020

४४१.परिंदा

Hummingbird, Bird, Flight, Avian

एक परिंदा डरते-डरते 
मेरी खिड़की पर आया,
फिर उड़ गया,
अगले दिन फिर आया,
एक पैर खिड़की के अन्दर रखा,
फिर उड़ गया.

थोड़े दिनों में वह 
घर के अन्दर घुस आया,
आस-पास बैठने लगा,
साथ बैठकर खाना खाने लगा.

मैंने पूछा,'डर नहीं लगता तुम्हें?'
उसने कहा,'लगता है,पर क्या करें?
तुम लोग बाहर कम निकलते हो,
तुम्हारे बिना हमारा मन नहीं लगता.'