शुक्रवार, 28 जून 2019

३६५. घास

Countryside, Grass, Grassland, Hill

मैं घास हूँ,
मुझे बोना नहीं होता,
न ही गड्ढा खोदकर 
मुझे रोपना होता है,
न मुझे खाद चाहिए,
न कोई ख़ास देखभाल.

मैं छोटी सही,
गहरी न सही मेरी जड़ें,
पर मैं तिरस्कृत,उपेक्षित,
कहीं भी उग सकती हूँ,
कठोर चट्टानों पर भी.

मुझे कम मत समझना,
मैं जो कर सकती हूँ,
बरगद और पीपल 
कभी नहीं कर सकते.

7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30 -06-2019) को "पीड़ा का अर्थशास्त्र" (चर्चा अंक- 3382) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  2. गहरा अर्थ समेटे छोटी सार्थक रचना।
    सुंदर ।

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  3. सच, घास की जिजीविषा प्रणम्य है!

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  4. वाह क्या सुंदर लिखावट है सुंदर मैं अभी इस ब्लॉग को Bookmark कर रहा हूँ ,ताकि आगे भी आपकी कविता पढता रहूँ ,धन्यवाद आपका !!
    Appsguruji (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह) Navin Bhardwaj

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