शनिवार, 18 मई 2019

३५९. सफ़र

उसका घर-बार,
धन-संपत्ति,
ज़मीन-जायदाद,
सब कुछ छिन गया,
कुछ भी नहीं बचा,
जिसे वह अपना कह सके.

जिन्होंने छीना,
वे कहा करते थे 
कि बहुत भला है वह,
अब सब कहते हैं,
बहुत भोला है वह.

सब कुछ लुटाकर 
उसने तय किया है-
भला होने से 
भोला होने तक का सफ़र. 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-05-2019) को "चलो केदार-बदरी" (चर्चा अंक- 3341) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं