शुक्रवार, 31 मई 2019

३६१. ख़लल

Alarm Clock, Classic, Clock, Dial, Gold

मेरे कमरे की दीवार पर एक घड़ी है,
जो हमेशा चलती ही रहती है,
कोई उसकी ओर देखे या न देखे.

कभी-कभार मुझे ज़रूरत पड़ती है,
तो मैं उसकी ओर देख लेता हूँ,
वह सही समय बता देती है,
फिर मैं उसे भूल जाता हूँ.
रात को उसकी टिक-टिक गूंजती है,
तो अलमारी में रख देता हूँ उसे.

चलते रहनेवालों को क्या मालूम 
कि उनके चलने से कभी-कभी 
सोनेवालों की नींद में ख़लल पड़ता है.

शनिवार, 25 मई 2019

३६०.गाँव पर कविता

मुझे याद आता है अपना गाँव,
जहाँ मेरा जन्म हुआ,
मेरा बचपन बीता.

वहां की पगडण्डियां,
गलियां,चौराहे,
बैलगाड़ियाँ,लालटेनें,
मंदिर की घंटियाँ,
पान की दुकान,
छोटा सा रेलवे स्टेशन 
और वहां के लोग याद आते हैं.

मैं चाहता हूँ 
कि गाँव के लिए कुछ करूँ,
पर शहर के चंगुल में हूँ,
वह छोड़ता ही नहीं मुझे,
या शायद मैं ही नहीं छोड़ता उसे.

अकसर ख़यालों में 
मैं अपने गाँव पहुँच जाता हूँ,
शहर में बैठकर 
मैं गाँव पर कविता लिखता हूँ.

शनिवार, 18 मई 2019

३५९. सफ़र

उसका घर-बार,
धन-संपत्ति,
ज़मीन-जायदाद,
सब कुछ छिन गया,
कुछ भी नहीं बचा,
जिसे वह अपना कह सके.

जिन्होंने छीना,
वे कहा करते थे 
कि बहुत भला है वह,
अब सब कहते हैं,
बहुत भोला है वह.

सब कुछ लुटाकर 
उसने तय किया है-
भला होने से 
भोला होने तक का सफ़र. 

शुक्रवार, 10 मई 2019

३५८.सीलन

अपनी शादी के बाद 
चाव से बनवाया था उसने 
यह खूबसूरत घर,
इसी में जन्मा था उसका बेटा,
यहीं से गया था विदेश,
इसी में वह बूढ़ी हुई,
इसी में विधवा.

अब इस घर की छत में,
यहाँ की दीवारों में 
बहुत सीलन है,
मिस्त्री हैरान हैं कि 
घर में इतने आंसू 
आते कहाँ से हैं 
कि सीलन जाती ही नहीं.

शनिवार, 4 मई 2019

३५७. खिड़कियों पर लड़कियां

इस घर के सामने 
एक जीवंत गली है,
पर सामने की ओर 
न खिड़की है,
न रोशनदान,
बस एक दरवाज़ा है,
जो बंद रहता है.

इस घर में खिड़कियाँ 
पीछे की ओर हैं,
जिनसे झांको,
तो ठीक सामने 
दीवार नज़र आती है.

इन खिड़कियों से 
मुश्किल से घुसती है 
थोड़ी-सी हवा,
ज़रा-सी धूप.

घर की लड़कियां दिन भर 
इन्हीं खिड़कियों पर बैठी रहती हैं.