शुक्रवार, 26 मई 2017

२६२. भगवान से



भगवान,मैं मानता हूँ 
कि तुम बहुत बड़े इंजीनियर हो.

तुमने अरबों-खरबों लोग बनाए,
हर एक दूसरों से अलग,
हर एक का अलग चेहरा-मोहरा,
हर एक की अलग कद-काठी,
हर एक का अलग रंग-रूप.

पर शायद कुछ युद्ध टल जाते,
शायद कुछ भाईचारा बढ़ जाता,
शायद दुनिया कुछ रहने लायक हो जाती,
शायद दुःख कुछ कम हो जाता,
अगर तुम ऐसा नहीं करते.

भगवान, मुझे लगता है 
कि तुमने अरबों-खरबों लोग बनाए,
यहाँ तक तो ठीक था,
पर हर एक को अलग बनाकर 
तुमने अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल 
ज़रूरत से थोड़ा ज़्यादा कर दिया.

भगवान, क्या तुम्हें नहीं लगता 
कि जो दुनिया तुमने ख़ुद बनाई,
वह तुम्हारी विलक्षण प्रतिभा की 
शिकार हो गई.

शुक्रवार, 19 मई 2017

२६१. पैसेंजर और राजधानी


धीरे-धीरे बढ़ रहा हूँ 
मैं तुम्हारी ओर,
जैसे बढ़ती है 
कोई पैसेंजर गाड़ी 
हर स्टेशन पर रुकती,
यात्रियों को चढ़ाती-उतारती.

लगता है,
यूँ ही रुकते-रुकाते,चलते-चलाते,
तुमसे हो ही जाएगी मुलाक़ात,
पर मेरा मुंह चिढ़ाती,
राजधानी ट्रेन की तरह 
तुम सर्र से निकल मत जाना.

शुक्रवार, 12 मई 2017

२६०. बोल

बोल, किस बात का डर है तुझे,
जो तेरे पास है, उसे खोने का
या उसे, जो तेरा हो सकता है?

बोल, क्यों चुप है तू,
कौन सा ताला है तेरे मुंह पर,
प्यार का, डर का या लालच का?

बोल, किस दुविधा में है तू,
क्या है, जो तेरे ज़मीर से बढ़कर है,
क्या है, जो तेरी इज्ज़त से क़ीमती है?

बोल, क्या चाह है तेरे मन में,
क्या इतनी छोटी है तेरी चादर 
कि समा नहीं सकते उसमें तेरे पांव?

क्या हुआ तेरी ज़बान को?
देख, निकला जा रहा है वक़्त,
मुंह से नहीं, तो आँखों से ही बोल,
बोल, कुछ तो बोल.

शनिवार, 6 मई 2017

२५९.बिकाऊ

वह जो बाज़ार में नहीं है,
यह मत समझना
कि बिकाऊ नहीं है.

ग़लतफ़हमी में है वह,
ग़लतफ़हमी में हैं सभी 
कि उसे ख़रीदना नामुमकिन है.

कभी कोई ख़रीदार आएगा,
उसकी ऐसी क़ीमत लगाएगा,
जैसी उसने सोची न होगी,
जो डाल देगी उसे दुविधा में,
तोड़ देगी उसका संकल्प.

अंततः उसे झुकना होगा,
उसे मानना ही होगा 
कि यहाँ सब बिकाऊ हैं,
जो बाज़ार में हैं, वे भी,
जो नहीं हैं, वे भी.