शनिवार, 31 दिसंबर 2016

२४१. बीते साल की पीड़ा




साल-भर मैंने तुम्हारा साथ दिया,
तुम्हारे सुख में हंसा, तुम्हारे दुःख में रोया,
तुम्हारी सफलताओं पर इतराया,
तुम्हारी विफलताओं पर हौसला बढ़ाया,
तुम सोये, पर मैं जागता रहा,
आराम नहीं किया पल भर भी,
फिर क्यों फेर लिया मुंह तुमने,
क्यों झटक दी ऊँगली जो थाम रखी थी?

नए साल के स्वागत में इतना खो गए
कि तुम भूल ही गए, 
कभी मैं भी तुम्हारे साथ था,
मुझे विदा करना तो दूर 
मुड़ कर भी नहीं देखा तुमने.

अरे स्वार्थी, निष्ठुर, एहसानफ़रामोश,
मैं जा रहा हूँ तुमसे दूर,
फिर लौट कर नहीं आऊँगा,
तुम पुकारोगे तो भी नहीं,
पर जाते-जाते दुआ करूँगा
कि जैसा तुमने मेरे साथ किया,
कोई तुम्हारे साथ न करे.

रविवार, 18 दिसंबर 2016

२४०. दिलासा


जीवन-भर पुकारा मैंने,
पर तुमने सुना ही नहीं,
शायद मेरी आवाज़ में दम नहीं था,
या तुम्हारे सुनने में ही कुछ कमी थी.

अब जब जीवन की संध्या-बेला में हूँ,
तो मन रखने के लिए ही सही 
बस इतना-सा कह दो 
कि तुमने मुझे सुनकर 
अनसुना नहीं किया था. 

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

२३९. पिता

पिता, तुम्हारे जाने पर 
मैं बिल्कुल नहीं रोया,
न जाने क्यों?
शायद इसलिए 
कि रोना कमज़ोरी की निशानी है 
और मैं चाहता था 
कि मजबूत दिखूं.

तुम्हारे जाने के बाद से 
एक तालाब-सा बन गया है 
अन्दर-ही-अन्दर,
अब टूटा चाहता है बाँध,
बहा चाहता है पानी.

लोग कहेंगे, पागल है,
बेवज़ह रो रहा है,
इससे तो अच्छा था 
कि मैं तभी रो लेता.

पिता, जो बीत गया,
क्या उसे दोहराया जा सकता है?
फिर से चले जाने के लिए 
क्या तुम लौट कर आ सकते हो?

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

२३८.ज़मीन


लहरों, बहुत हो गया खेल-कूद,
बहुत हो गई मस्ती,
बहुत घुमा दिया तुमने मुझे 
बीच समुद्र में,
अब मुझे किनारे पर ले चलो.

चाहो तो पटक दो मुझे
चट्टानों के ऊपर,
पर महसूस करने दो मुझे 
पांवों के नीचे 
ज़मीन के होने का सुख.