शनिवार, 27 अगस्त 2016

२२५. रात की आवाज़

गहरी काली रात,
न चाँद, न सितारे,
न कोई किरण रौशनी की.

चारों ओर पसरा है 
डरावना सन्नाटा,
सिर्फ़ सांय-सांय 
हवा बह रही है.

दुबके हैं लोग घरों में,
कुछ नींद में हैं,
तो कुछ होने का 
नाटक कर रहे हैं.

लम्बी गहरी रात 
अब ऊब रही है,
जाने को बेचैन है,
पर ख़ुद नहीं जायेगी.

ज़रा ध्यान से सुनो,
जिस रात से तुम सहमे हुए हो,
वह तुमसे कह रही है
कि सोनेवालों, उठो,
मुझे भगाने की पहल करो,
सूरज तुम्हारे दरवाज़े पर
दस्तक दे रहा है. 

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

२२४. बदले हालात

उन्हें पसंद नहीं 
तुम्हारा आँखें दिखाना.
वे कुछ भी कहें,
तुम सिर झुकाए सुनती रहो,
बीच-बीच में नाड़ हिलाकर 
हामी भर दो, 
तो और भी अच्छा.

बदले हालात को पहचानो,
अब छूट चुका है तुम्हारा मायका,
हो चुकी हो तुम किसी और की,
खो चुकी हो अपनी पहचान,
अब सिर्फ़ कठपुतली हो तुम.

जिस दुनिया में तुम हो,
वह एक अलग दुनिया है,
वहां शादीशुदा महिलाओं का  
आँखें दिखाना सख्त मना है.