रविवार, 22 मई 2016

२१५. कौन

वे चुप हैं जिनसे उम्मीद थी ख़िलाफ़त की,
कहीं और चलते हैं, अब बचाएगा कौन ?

पहचाना सा लगता है मुझे हर एक चेहरा,
कौन यहाँ दोस्त है, दुश्मन है कौन?

हवाएं लौटी होंगी दरवाज़े से टकराकर,
किसको पड़ी है, यहाँ आएगा कौन?

वो जो हँस रहा है फ़ोटो में खुलकर,
वैसे तो मैं ही हूँ, पर पूछता हूँ कौन?

फुरसत के पलों में कभी सोचना ज़रूर,
जो सब कुछ था कल तक, वो आज है कौन?

मरने को तैयार हूँ मैं किसी भी पल लेकिन,
अजनबियों के शहर में मुझे जलाएगा कौन?

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ... कितने प्रश्न हैं .. पर जिंदगी हर किसी का जवाब दे ही देती अहि समय आने पर ...

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  2. आत्मिकता का भाव संचार करती एक अच्छी रचना।मुझे अच्छी लगी।

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