सोमवार, 30 दिसंबर 2013

१११. पुराना साल

कई दिनों से लगातार
सिसक रहा है पुराना साल,
सुन रहा है नए साल के 
आने की आहट.
सोच रहा है कि काश 
उसे समय मिल जाय,
अपनी छाप छोड़ दे वह,
गुज़रे सालों के अम्बार में 
कुछ अलग नज़र आए वह,
एक-एक कर वे सारे काम कर जाए, 
जो उसने तब सोचे थे 
जब वह पुराना नहीं,
नया साल था.

सुनो,पुराने साल,
यह तो तुम भी जानते हो 
कि बेफ़िक्री में बिताया तुमने पूरा जीवन,
कुछ नहीं कर पाए तुम,
क्योंकि करने का प्रयास ही नहीं किया,
अब रोने से क्या फ़ायदा?
तुम कुछ भी कर लो,
कितना भी गिड़गिड़ा लो,
जाना तो तुम्हें होगा ही,
पल भर की मोहलत भी 
नहीं मिलनेवाली तुम्हें,
ऐसा ही होता है,
यही नियम है,
यही सच है.

पुराने साल, उठो,
अब भी कुछ कर लो,
थोड़ा समय तुम्हारे पास 
अब भी शेष है,
कुछ नहीं करने से तो अच्छा है 
कि जाते-जाते कुछ कर जाओ.

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

११०. ईसा और सलीब

दो हज़ार साल पहले 
वह कौन था जिसने 
उठाई थी सलीब,
वही सलीब जिस पर
उसे खुद चढ़ना था ?

वह कौन था ,
जिसका निकला था जुलूस,
जिसका उड़ा था मज़ाक,
जिसे मिला था दंड -
सच्चाई और अच्छाई का ?

तब से लगातार 
वही सलीब, वही ईसा,
दोहराई जा रही है 
वही पुरानी कहानी.

कितने हज़ार साल और लगेंगे
हालात बदलने में,
वह दिन कब आएगा,
जब सूली पर वही चढ़ेगा
जिसे उस पर चढ़ना चाहिए?
वह दिन कब आएगा 
जब हम इतना कह सकेंगे 
कि जो आदमी सूली पर चढ़ा है,
वह कम-से-कम ईसा नहीं है? 

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

१०९. बीट

मैंने देखा,
सड़क पर कुछ गुंडे 
छेड़ रहे थे एक बच्ची को,
रो रही थी वह,
मदद मांग रही थी मुझसे,
पर मैं चुप था,
बहुत डरा हुआ था,
हँस रहे थे गुंडे,
बेबस थी वह बच्ची.

डाल पर बैठा एक कौवा
सब कुछ देख रहा था,
चिल्ला रहा था गला फाड़कर,
किए जा रहा था काँव-काँव,
पर बेबस था वह भी.

अंत में थक गया वह,
उसने मेरी ओर देखा,
बीट की मुझपर 
और फुर्र से उड़ गया.

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

१०८. चाँद

तुम जो मुझे खूबसूरत समझते हो,
उसमें मेरा अपना कुछ भी नहीं है,
खूबसूरती तो तुम्हारी आँखों में है,
जो हर चीज़ को खूबसूरत बनाती है.

मेरा गोल होना तुम्हें अच्छा लगता है,
यह तुम्हारी अपनी पसंद है,
हो सकता है तुम्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ 
चौकोर चीज़ें पसंद होतीं.

तुम्हें मेरी चाँदनी पसंद है,
पर हो सकता है 
तुम्हें अँधेरा पसंद होता,
तुम्हें शीतलता भाती है,
पर हो सकता है
तुम्हें तेज़ किरणें पसंद होतीं.

वैसे भी मेरा प्रकाश, 
जो तुम्हें शीतल लगता है,
अँधेरा दूर करता है,
मेरा अपना नहीं,
किसी और का है.

मैं जो पल-पल रूप बदलता हूँ,
उसमें मेरा कोई हाथ नहीं,
घटना-बढ़ना मेरी मज़बूरी है,
इसका कारण कोई और है.

मुझमें एक ही चीज़ मेरी है,
यह जो मेरे बदन पर
काले-काले बदसूरत धब्बे हैं,
ये बस मेरे अपने हैं.

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

१०७. त्याग

आओ, बाँट ले आपस में 
घर का सारा सामान.

कर लें खेत के तीन टुकड़े-
पूरबवाला छोटे का,
बीचवाला मंझले का
और पश्चिमवाला मेरा.

बाँट लें घर के कमरे-
पीछेवाले मंझले के,
आंगनवाले छोटे के
और सामनेवाले मेरे.

सोना-चांदी,कांसा-पीतल,
भगोने-कड़ाही,चम्मच-कांटे,
लोहा-लक्कड़, कूड़ा-करकट,
सब कुछ बाँट लें तीन हिस्सों में.

अब बचे माँ और पिताजी,
कैसे बाँटें उन्हें तीन हिस्सों में?
चलो, माँ छोटे की,
पिताजी मंझले के,
लो, अबकी बार मैंने 
अपना हिस्सा छोड़ दिया.


मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

१०६. मरम्मत

क्या तुम्हें पता है,
हमारे रिश्ते का पलस्तर 
थोड़ा-थोड़ा झड़ने लगा है,
दीवार की इक्का-दुक्का ईंट 
ज़रा-ज़रा हिलने लगी है,
फीकी पड़ने लगी है
रंगों की चमक,
एकाध टाइल कहीं-कहीं 
चटखने लगी है,
फ़र्श कहीं-कहीं धंसने लगा है,
ज़मीन कहीं-कहीं झलकने लगी है.

चलो, अब चेत जांय,
ज़रा-सा डर जांय,
टूट-फूट का आकलन कर लें,
कहीं देर न हो जाय.

इतना तो मैं जानता हूँ, 
तुम्हें भी तो पता है 
कि रिश्ते और इमारत की मरम्मत 
जितनी जल्दी हो जाय, 
उतना अच्छा है.