रविवार, 6 मई 2012

31.पगडण्डी


कौन  चला होगा यहाँ पहली बार,
जो भी चला होगा क्यों चला होगा,
किसी से मिलने चला होगा 
या किसी से बिछड़कर ?

जोश  से भरा होगा या डर से,
काँपते क़दमों से  चला होगा 
या संकल्प और दृढ़ता से,
स्वेच्छा से चला होगा या मजबूरी से ?

कितने सालों पहले चला होगा,
अकेले चला होगा या किसी के साथ,
चलकर कहाँ तक  पहुंचा होगा,
पहुंचा भी होगा या नहीं?

जो भी चला हो, जैसे भी चला हो,
डरकर चला हो या साहस  से भरकर,
उसके चलने से कोई राह तो मिली,
घने जंगल  में पगडण्डी तो बनी.

सब चुप बैठ जाएँ तो कुछ  नहीं होता,
साहस  के साथ  बैठने से अच्छा है 
डर के साथ  चलते रहना,
पगडंडियों के लिए चलना ज़रूरी है.

14 टिप्‍पणियां:

  1. सब चुप बैठ जाएँ तो कुछ नहीं होता,
    साहस के साथ बैठने से अच्छा है
    डर के साथ चलते रहना,
    पगडंडियों के लिए चलना ज़रूरी है.

    सकरात्म्क्ता की सोच लिए अच्छी रचना ...

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  2. चलते रहना ही चाहिए... निरुद्देश्य ही सही, राहें बन ही आती हैं!
    सुन्दर विचारों को उद्घाटित करती अच्छी कविता!
    सादर!

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  3. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति । जीवन गतिशील होना चाहिए । मरे पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

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  4. बहुत सुंदर..........................
    प्रेरक और प्यारी रचना....

    सादर

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  5. सब चुप बैठ जाएँ तो कुछ नहीं होता,
    साहस के साथ बैठने से अच्छा है
    डर के साथ चलते रहना,
    पगडंडियों के लिए चलना ज़रूरी है.

    बहुत अच्छी प्रेरक प्रस्तुति,....

    RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  6. पगडंडियों के लिए चलना ज़रूरी है....

    ये क़दमों के निशान हैं जो अनुभव ने डाले हैं ... आने वाली पीड़ी कों रास्ता दिखाने के लिए ...

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  7. बहुत सुंदर मन के भाव ...
    प्रभावित करती रचना .

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  8. सब चुप बैठ जाएँ तो कुछ नहीं होता,
    साहस के साथ बैठने से अच्छा है
    डर के साथ चलते रहना,
    पगडंडियों के लिए चलना ज़रूरी है.

    ....बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  9. बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना!

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  10. बहुत सन्देश परक कविता हम पग डंडिया बनायेंगे तभी तो हमारी आने वाली पीढ़ी को रास्ता मिलेगा कुछ न करने कुछ करना बेहतर है चलना ही जिंदगी है

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  11. चरैवेति चरैवेति
    जो भी चला हो, जैसे भी चला हो,
    डरकर चला हो या साहस से भरकर,
    उसके चलने से कोई राह तो मिली,
    घने जंगल में पगडण्डी तो बनी.
    सुन्दर रचना

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  12. बहुत ही सुन्दर..सार्थक रचना....
    बेहतरीन अभिव्यक्ति....

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