गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

802. पिता की खांसी

 



पिता खाँसते हैं,

तो पूरा मोहल्ला जान जाता है

कि घर में कोई है, 

कोई चोर-उचक्का 

साहस नहीं करता 

घर में घुसने का,

अमेज़ॅनवाला नहीं लौटता 

बिना सामान दिए,

डाकिया नहीं लौटता 

बिना ख़त दिए,

घर में नहीं छाती कभी 

ख़ामोश मुर्दनी। 


पिता सिर्फ पिता नहीं है, 

वे घर का दरवाज़ा हैं,

दरवाज़े के अंदर का कुंडा हैं,

बाहर का ताला हैं। 


पिता दिन में भी खाँसते हैं,

पर रात में ज़्यादा खाँसते हैं,

उन्हें नींद नहीं आती,

पर हम चैन की नींद सोते हैं। 


मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

801. फ़र्स्ट अप्रैल

 


मूर्ख बनाने का भी कोई दिन होता है क्या,

हम तो हमेशा ही बनाते रहते हैं, 

शुरुआत में प्रयोजन से बनाते थे, 

अब तो आदत हो गई है बनाने की। 


कितना अच्छा लगता है मूर्ख बनाकर,

भरोसा हो जाता है अपनी होशियारी में, 

पर यह कहाँ पता होता है हमें 

कि मूर्ख बनाने के चक्कर में 

कितने मूर्ख लगते हैं हम ख़ुद?


कौन नहीं जानता हमारे सिवा 

कि कितने बड़े मूर्ख हैं हम, 

सब जानते हैं, जितने हम लगते हैं, 

असल में उससे ज़्यादा ही होंगे। 


अब से फ़र्स्ट अप्रैल को मूर्ख बनाने की नहीं, 

अपनी मूर्खता को पहचानने की कोशिश करें

और पहचान जाएँ, तो ग़म न करें, 

मूर्खता की नहीं, होशियारी की बात है

कि होशियार होने से बेहतर है मूर्ख होना।