पिता खाँसते हैं,
तो पूरा मोहल्ला जान जाता है
कि घर में कोई है,
कोई चोर-उचक्का
साहस नहीं करता
घर में घुसने का,
अमेज़ॅनवाला नहीं लौटता
बिना सामान दिए,
डाकिया नहीं लौटता
बिना ख़त दिए,
घर में नहीं छाती कभी
ख़ामोश मुर्दनी।
पिता सिर्फ पिता नहीं है,
वे घर का दरवाज़ा हैं,
दरवाज़े के अंदर का कुंडा हैं,
बाहर का ताला हैं।
पिता दिन में भी खाँसते हैं,
पर रात में ज़्यादा खाँसते हैं,
उन्हें नींद नहीं आती,
पर हम चैन की नींद सोते हैं।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शुक्रवार 11 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सही लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
#https://shalinikaushikadvocate.blogspot.com/2025/04/1930.html
सुन्दर
जवाब देंहटाएंपिता अपने होने भर से घर को सुरक्षित रखते हैं, एक साये की तरह साथ निभाते हैं परिवार का, उनकी याद संबल बनेगी जब वे नहीं होंगे
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन सृजन ओंकार जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसही बात लिख दी आपने।
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