कृष्ण,
आज फिर से जन्म लो,
नए इरादों के साथ,
नई समस्याओं से निपटने।
कृष्ण,
अब तुम्हारे पास समय नहीं
कि मधुबन में गाएँ चराओ,
गोपियों-संग रास रचाओ,
ग्वालों के साथ खेलो,
हांडियों से माखन चुराओ।
कृष्ण,
अब कालिया-दमन नहीं,
पूतना-वध नहीं,
उंगली पर गोवर्धन-धारण नहीं,
बड़े-बड़े काम पड़े हैं,
चुनौतियाँ बहुत बड़ी हैं।
कृष्ण,
अब एक द्रौपदी नहीं,
कई-कई द्रौपदियाँ
एक साथ पुकार रही हैं तुम्हें,
तुम्हें हर जगह जाना है,
दुःशासन को ठिकाने लगाना है।
कृष्ण,
अब काफ़ी नहीं
कि तुम किसी के सारथी बन जाओ,
यह महाभारत भीषण है,
इसमें तुम्हें अस्त्र उठाना होगा
और शायद अकेला सुदर्शन-चक्र
इसे जीतने के लिए काफ़ी न हो।
"कृष्ण,
जवाब देंहटाएंअब काफ़ी नहीं
कि तुम किसी के सारथी बन जाओ,
यह महाभारत भीषण है "
प्रभावशाली लेखन !
सुंदर लेखन।
जवाब देंहटाएंजय श्रीकृष्ण।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २७ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर
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