सोमवार, 8 अप्रैल 2024

७६१. ख़ामोश झील पर चांद

 


पर्दे के पीछे तेरा रूप दमकता है,

जैसे शाख़ों के पीछे आफ़ताब चमकता है. 


तेरे गालों पर झुकी हुई बालों की लट,

जैसे कोई भंवरा फूल पर उतरता है. 


तेरे होंठों पर खिली ये मासूम-सी मुस्कान,

जैसे पहाड़ों के बीच से बादल गुज़रता है. 


ये काजल की लक़ीरें, ये ख़ूबसूरत आँखें,

जैसे पत्तों में सिमटकर फूल महकता है. 


मेरे मन के वीराने में तेरे प्यार का एहसास,

जैसे राख के अंदर कोई शोला भड़कता है. 


रात तेरी याद कुछ इस तरह आती है,

जैसे ख़ामोश झील पर चांद उतरता है. 


तू जो हंसती है, तो हरेक शै हंसती है,
तू जो रोती है, तो ज़र्रा-ज़र्रा सिसकता है. 

6 टिप्‍पणियां: