शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

७६३. ब्रह्मपुत्र से



 

ब्रह्मपुत्र,

कल शाम तुम्हारे पानी में 

जो सूरज डूबा था,

अब तक निकला ही नहीं. 


खोजो उसे,

निकालो जल्दी से,

कहीं दम न घुट जाए उसका. 


इतना भी क्या प्रेम सूरज से

कि जान ही ले लो उसकी,

सतह पर आने ही न दो उसे. 


आकाश को उसका इंतज़ार है,

न जाने कितनी आँखें 

उसे देखने को तरस रही हैं.


चाँद भी थककर सो गया है,

वह भी जानता है 

कि भले ही वह ज़्यादा सुन्दर हो,

सूरज की जगह नहीं ले सकता. 


ब्रह्मपुत्र,

कभी ध्यान से देखो,

डूबते हुए सूरज से 

कहीं ज़्यादा अच्छा लगता है 

उगता हुआ सूरज. 


6 टिप्‍पणियां:

  1. अभिनव चिन्तन । लाजवाब सृजन ।अति सुन्दर ।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 21 अप्रैल 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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