रविवार, 18 जून 2023

७१९. नदी

 


बहुत विशाल होती है नदी,

बहुत गहरी,

पर कोई भी उतर जाता है उसमें,

नहीं पहचानती वह 

अपनी ताक़त. 

**

नदी,

तुम ऊपर से शांत हो,

पर नीचे तेज़ है तुम्हारी धार,

कितना अच्छा होता,

जो इसका उल्टा हुआ होता. 

**

नदी,

तुम शांत हो, तो रहो,

पर कुछ ऐसा करो

कि जो तुम्हें देखे

समझ ही न पाए, 

तुम्हें छेड़ा जा सकता है या नहीं. 

**

नदी,

तुम चुपचाप बहना चाहो, बहो,

पर कभी-कभी तुम में 

उफान भी आना चाहिए,

बहुत ज़रूरी है ऐसा होना  

तुम्हारी अस्मिता के लिए. 

7 टिप्‍पणियां:

  1. हर आत्मा ऐसी ही होती है, नदी की तरह जिसे अपनी ताक़त का भी पता नहीं

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २० जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. पर्यावरण-संरक्षण का सन्देश देती सुन्दर कविता !
    नदी मैया का जब उसकी सन्तान निरंतर दोहन-शोषण करती है तब उसमें क्रोध का उफ़ान आता है और फिर वह अपनी इस स्वार्थी सन्तान की समृद्धि को, उसके सुख को, अपने साथ बहा ले जाती है.

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
    सादर।

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  5. वाह!!!
    नदी के माध्यम से नारी को प्रेरित करती रचना
    लाजवाब मानवीकरण।

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  6. दी,

    तुम चुपचाप बहना चाहो, बहो,

    पर कभी-कभी तुम में

    उफान भी आना चाहिए,

    बहुत ज़रूरी है यह

    तुम्हारी अस्मिता के लिए.

    जवाब देंहटाएं