सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

७००. तितली

 


तितली,

तुम कभी इस फूल पर 

तो कभी उस फूल पर  

क्यों बैठती रहती हो?

एक से बंधकर तो देखो,

ठहराव में जो आनंद है,

भटकाव में नहीं है. 

**

तितली,

अभी तो वसंत है,

चारों ओर फूल खिले हैं,

पर पतझड़ में भी

कभी चली आया करो,

पौधों को अच्छा लगेगा. 

**

तितली,

कई दिनों से 

यह सूखा फूल 

डाली से अटका है,

तुम एक बार आ जाओ,

इसे मुक्त करो.  

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 02 मार्च 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. आदरणीय सर, बहुत हु सुंदर भावपूर्ण कविता। तितली के माध्यम से भटकते हुए मन की दशा का वर्णन करना दिल को छू गया। मेरी प्रिय पंक्ति आपकी कविता की अंतिम पंक्ति है
    तितली,

    कई दिनों से

    यह सूखा फूल

    डाली से अटका है,

    तुम एक बार आ जाओ,


    इसे मुक्त करो.

    बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए आभार व आपको मेरा सादर प्रणाम।

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  3. बहुत अच्छी संवेदना से भरपूर कविता. आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें

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  4. इस छोटी सी कविता के माध्यम से आपने बहुत गहरा ज्ञान देने का प्रयास किया है अगर कोई समझ सके तो ।

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