शनिवार, 7 जनवरी 2023

६९०. पुल से

 


पुल,

क्या तुम्हारा मन नहीं करता 

कभी नदी से मिलने का,

या तुम इतने सालों से 

उसे देखकर ही ख़ुश हो?


पुल,

अपनी सुविधा के लिए दूसरों ने 

तुम्हें किनारों से जकड़ दिया है,

वे तुम्हारे सहारे नदी पार कर रहे हैं,

पानी में डुबकी भी लगा रहे हैं,

पर तुम चुपचाप देख रहे हो. 


पुल, 

अगर नदी से मिलना चाहते हो,

तो टूटना होगा तुम्हें,

कब तक इंतज़ार करोगे 

कि नदी ख़ुद उठे 

और तुम्हें गले लगा ले?



6 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सार्थक रचना ।
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ll

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  2. लेकिन पुल टूट जाएगा तो सियासत शुरू हो जाएगी

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  3. चिन्तनपरक शैली .., लाजवाब सृजन ।

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  4. मान्यवर ! आपने ॥ पुल ॥ कि मन को सुना समझा और बड़े सहज़ता से उसे शब्द में पिरोया है / /
    उम्दा !

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