गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

६८२. मेरा शरीर

 


बहुत प्यार है मुझे अपने शरीर से,

पर आख़िर यह है किसका?

मेरा है,तो क्यों अपनी मर्ज़ी से 

बीमार पड़ जाता है?

क्यों उधर चल पड़ता है,

जिधर मैं जाना नहीं चाहता,

क्यों मेरी बातों को सुनकर भी  

अनसुना कर देता है?


मेरा शरीर अगर सच में मेरा है, 

तो क्यों मुझे जाना होगा  

इसे यहीं छोड़कर एक दिन?

क्यों जला देंगे इसे दूसरे लोग 

मेरी अनुमति के बिना?


10 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०४-१२-२०२२ ) को 'सीलन '(चर्चा अंक -४६२४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. आदरणीय ओंकार जी, namaste🙏❗️
    तन से आसक्ति की निरर्थकता को अल्प शब्दों में रेखांकित करती आपकी रचना बहुत अच्छी है. हार्दिक साधुवाद ❗️
    मेरी रचना "मैं ययावारी गीत लिखूँ," मेरे ब्लॉग पर पढ़ने की बाद ब्लॉग पर ही दिए गए लिंक पर भी मेरी आवाज़ में दृश्यों की संयोजन की साथ अवश्य देखें और सुनें... सादर ❗️--ब्रजेन्द्र नाथ

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  3. अक्सर तो इसका उल्टा ही होता है, शरीर की भाषा आदमी नहीं सुनता, वह कहे जाता है ऐसा करोगे मैं तो बीमार हो सकता हूँ, पर मन एक नहीं सुनता

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  4. ओंकार जी प्रश्नों में निर्भयता है , सुन्दर अभिव्यक्ति !
    श्रीमद भगवद गीता , में स्वयं विधाता ने बहुत श्रमपूर्वक विस्तार से सब उत्तर दे दिए है !अवश्य पढ़े पढ़ावे , गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनाये
    जय श्री कृष्ण जी !

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  5. यह तो बस मन के झंझावात हैं, बाकी शरीर तो किसी का नहीं होता बस आत्मा का बसेरा है ।
    आत्मा को झकझोरता सृजन।

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  6. बहुत बार अस्वस्थ होने पर इस तरह के विचार मन में आते हैं ।आपकी कृति को पढ़ कर वही अनुभूत पल साकार हो उठे । चिंतनपरक सृजन ।

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  7. क्यों जला देंगे इसे दूसरे लोग

    मेरी अनुमति के बिना?...वाह...क्‍या बात है...वाह

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  8. शरीर नश्वर है पर जीते जी ना किसी को इसका एहसास होता है ना कोई एहसास करना चाह्ता है।भावपूर्ण और मार्मिक अभिव्यक्ति ओंकार जी 🙏

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  9. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    क्षमा करें अगर मेरी भारतीय भाषा को समझना मुश्किल है
    greetings from malaysia
    शुक्रिया

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