शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

६६९. स्वर्ग और नरक

 


अपनी दुनिया में वह 

बहुत दुःखी था, 

मुझे तरस आया,

मैंने उसे स्वर्ग में रखा,

वह वहाँ भी दुःखी था. 


उसके लिए स्वर्ग और नरक 

दोनों एक जैसे थे, 

उसमें वह हुनर था 

कि स्वर्ग को भी नरक बना दे. 


असल में दुःख बाहर नहीं,

उसके अंदर ही था, 

स्वर्ग में भी सुखी होना 

उसके वश में नहीं था.



8 टिप्‍पणियां:

  1. सही है दुःख और सुख सब अपने मन के अन्दर ही हैं .

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  2. असल में दुःख बाहर नहीं,
    उसके अंदर ही था,
    स्वर्ग में भी सुखी होना
    उसके वश में नहीं था.
    मन के अन्दर का दुख जब तक ख़त्म नहीं हो तब तक स्वर्ग नरक समान हैं । मर्मस्पर्शी सृजन ।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१०-१० -२०२२ ) को 'निर्माण हो रहा है मुश्किल '(चर्चा अंक-४५७७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  4. अद्भुत अभिव्यक्ति... सुख और दुःख का सृजन भीतर ही होता है...👏👏👏

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