आओ चलें,
थोड़ी देर बैठें
उस पेड़ पर,
जिसका साथ छोड़ दिया है
पत्तों ने,फूलों ने,
जिसकी जड़ें अब
सूखने लगी हैं,
जिसके पास देने को
कुछ भी नहीं बचा,
छाया भी नहीं.
आओ,बैठें
किसी सूखी डाली पर,
जीवंत कर दें ठूँठ को,
महसूस करें
कि इस डाली से उस डाली तक
फुदकने में अब
कोई बाधा नहीं है,
पत्तों की भी नहीं.
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२७-0६-२०२१) को
'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- ४१०८ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बेहतरीन रचना हेतु साधुवाद। ।।।।
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब अहसास और उनको बड़ी सुंदरता से शब्दों में पिरोया है । बधाई हो ।
सादर
आओ बैठें उसकी सूखी डाली पर
जवाब देंहटाएंऔर सुनें अतीत की यादों का संगीत
सुन्दर रचना
बहुत ही सुंदर सृजन गहन चिंतन लिए।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह! अद्भुत जीवन दर्शन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंआओ,बैठें
जवाब देंहटाएंकिसी सूखी डाली पर,
जीवंत कर दें ठूँठ को,
बहुत ही गहन भाव लिए लाजवाब सृजन।
वाह!!!
कहीं कोई बाधा नहीं है । इसमें भी सकारात्मकता का भाव। ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
एक सूखे पेड़ से भी प्रेरणा दे गयी आपकी सुंदर रचना।
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