शनिवार, 10 दिसंबर 2016

२३९. पिता

पिता, तुम्हारे जाने पर 
मैं बिल्कुल नहीं रोया,
न जाने क्यों?
शायद इसलिए 
कि रोना कमज़ोरी की निशानी है 
और मैं चाहता था 
कि मजबूत दिखूं.

तुम्हारे जाने के बाद से 
एक तालाब-सा बन गया है 
अन्दर-ही-अन्दर,
अब टूटा चाहता है बाँध,
बहा चाहता है पानी.

लोग कहेंगे, पागल है,
बेवज़ह रो रहा है,
इससे तो अच्छा था 
कि मैं तभी रो लेता.

पिता, जो बीत गया,
क्या उसे दोहराया जा सकता है?
फिर से चले जाने के लिए 
क्या तुम लौट कर आ सकते हो?

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