बुधवार, 22 जून 2022

६५४.खूँटी

 


मुझे लगता है 

कि हर घर में 

एक खूँटी होनी चाहिए,

ख़ासकर हर उस घर में,

जहाँ कोई बड़ा-बूढ़ा रहता है,

जिसके लिए न कमरों में जगह है,

न आँगन में, न बालकनी में.


उसे भी जगह मिलनी चाहिए,

किसी खूँटी पर ही सही,

जहाँ उसे लटकाया जा सके,

जब तक कि वह मर न जाए.


शनिवार, 11 जून 2022

६५३.माँ




माँ थाली में आटा लेती है,

मिलाती है उसमें थोड़ा-सा नमक,

थोड़ी-सी अजवाइन, थोड़ा-सा घी

और गूँध देती है सब कुछ एक साथ.


माँ थोड़े-से आलू लेती है, 

टुकड़े करती है उनके 

और छौंक देती है 

प्याज,मिर्च,मसालों के साथ. 


माँ भर देती है डिब्बे में 

पूरियाँ,भाजी और थोड़ा-सा अचार,

रख देती है थैले में पानी के साथ 

और पकड़ा देती है मुझे जाते-जाते. 


भरपेट नाश्ता करके 

मैं निकलता हूँ सफ़र पर,

मगर गाड़ी में बैठते ही 

नज़र जाने लगती है थैले पर.


मैं अक्सर महसूस करता हूँ 

कि जब भी माँ खाना बांधती है,

मुझे भूख बहुत लगती है. 


 


शुक्रवार, 3 जून 2022

६५२. ख़ंजर

 


अक्सर मैं रातों को चौंक जाता हूँ,

नींद जो टूटती है, तो जुड़ती ही नहीं,

दिन में सुनी गई बातों के ख़ंजर 

रात के सन्नाटे में बेहद क़रीब लगते हैं. 


जो हथियार दिन में चलते हैं,

रातों को बहुत ज़ख़्म देते हैं,

मैं हर रोज़ मर जाता हूँ,

हर रोज़ बच भी जाता हूँ.


ऐसे तिलस्मी ख़ंजर भी होते हैं,

तभी जाना, जब वे मुझपर चले.