अब जब घर में हो,
तो कभी आईना देख लेना,
फिर सच-सच बताना,
क्या तुम वही हो,
जो तुम सोचते हो
कि तुम हो.
***
अब जब घर में हो,
तो उनकी भी सुध लो,
जो सालों से घर में हैं,
पर बेघर हैं.
***
अब जब घर में हो,
तो थोड़ा शांत बैठो,
बहुत भाग चुके ,
इतना कि भागते-भागते तुम
ख़ुद से आगे निकल गए हो.
***
अब जब घर में हो,
तो गिनो,
तुम्हारे आस-पास कितनी खाइयाँ हैं,
सबको पाटने के लिए तुम्हें
कितना लम्बा लॉकडाउन चाहिए?
बेहतरीन सृजन । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंमैंने, कतिपय कारणों से, अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सूचना, सिर्फ मेरे ब्लॉग
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअब जब घर में हो,
जवाब देंहटाएंतो थोड़ा शांत बैठो,
बहुत भाग चुके ,
इतना कि भागते-भागते तुम
ख़ुद से आगे निकल गए हो.....लाज़वाब और गहरे अर्थ वाला। आभार और बधाई!!!
अब जब घर में हो,
जवाब देंहटाएंतो उनकी भी सुध लो,
जो सालों से घर में हैं,
पर बेघर हैं.
वाह!!!
क्या बात...
बहुत लाजवाब।
बहुत सुन्दर चिन्तनपरक सृजन.
जवाब देंहटाएंअब जब घर में हो,
जवाब देंहटाएंतो थोड़ा शांत बैठो,
बहुत भाग चुके ,
इतना कि भागते-भागते तुम
ख़ुद से आगे निकल गए..बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर