शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

३७९. चींटियाँ

Red Ant, Ant, Macro, Insect, Ant, Ant

चींटियाँ कहीं भी,
किसी के भी 
पांवों तले दब जाती हैं,
इतनी छोटी होती हैं वे 
कि दिखाई ही नहीं पड़तीं.

वे आगाह भी करती हैं ,
तो किसी को पता नहीं चलता,
उनकी चीख़ें नहीं पहुँचती 
कुचलनेवालों के कानों तक.

किसी को फ़र्क नहीं पड़ता 
चींटियों के मर जाने से,
पर चींटियों का जन्म हुआ है,
तो उन्हें जीने का हक़ है,
जीने के लिए लड़ने का हक़ है.  

अगर चींटियों को जीना है,
तो उन्हें बनाना होगा अलग रास्ता,
ऊंची करनी होगी आवाज़
और काट खाना होगा उन पांवों को,
जिनके नीचे दबकर वे दम तोड़ देती हैं.

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर! हर प्राणी को जीने का हक है।

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  2. बहुत सुंदर कविता.
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
    iwillrocknow.com

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  3. वाह! जीने के अधिकार के लिए चीखती रचना !

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  4. सच है ... पर बड़े लोग ऐसा कहाँ होने देते हैं ...

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