शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

३४७.यमराज से विनती

यमराज,
इतनी जल्दी आ गए!
अभी तो लिखनी हैं मुझे 
बहुत सारी कविताएं,
इंतज़ार में हैं मेरे पाठक,
उनका दिल मत दुखाओ।

चलो, थोड़ी मोहलत ही दे दो,
घूम आओ ज़रा कॉलोनी में,
मेरे बाद जिसकी बारी है,
उसे पहले उठा लो,
उसे कौन सी कविता लिखनी है?

यह भी संभव नहीं,
तो बैठ जाओ सोफ़े पर,
सुस्ता लो थोड़ा,
कहो तो चाय भिजवा दूँ 
एक कप तुम्हारे लिए.

वह कविता तो पूरी कर लूँ ,
जो कल रात शुरू की थी,
सच कहता हूँ यमराज,
अगर अधूरी रह गई वह कविता,
तो मैं चैन से मर नहीं सकूंगा। 



सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

३४६. सोने का समय


मैंने तय कर लिया है 
कि आज रात निकलूँगा 
एक सुहाने सफ़र पर.

देखूँगा
आसमान में चमकते सितारे,
झील में उतरा चाँद,
महसूस करूंगा
आवाज़ों का चुप होना,
कहीं-कहीं झींगुरों का गीत
या दूर कहीं बजता 
मीठा-सा संगीत।

रात के हाथों में हाथ डाले  
मैं चलता रहूंगा,
जब तक कि सुबह न हो जाय.

फिर शोरगुल शुरू होगा,
अफ़रा-तफ़री मचेगी,
न सितारे होंगे, न चाँद,
अजीब सी जल्दी में होंगे लोग,
बदहवास होंगे सब-के-सब,
सूरज ताक में होगा हमले की,
हवाओं में दहक उठेंगे अंगारे।

मेरे सोने के लिए 
इससे अच्छा समय 
और क्या होगा?

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

३४५.ठंड में बारिश


बारिश,  
बरसने से पहले
थोड़ा तो सोचा होता
कि अस्पतालों के बाहर
मरीज़ सो रहे हैं। 

थोड़ा तो सोचा होता
कि फुटपाथों पर
कुछ बच्चे, कुछ बूढ़े
कुछ महिलाएं, कुछ पुरुष
सो रहे हैं। 

बारिश
तुमने बहुत ग़लत किया
जो घरों से बाहर थे
तुमने एक बार फिर
उन्हें बेघर कर दिया।

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

३४४. रिटायरमेंट के बाद का दिन

बड़ी सुहानी सुबह है आज,
रज़ाई थोड़ी कुनकुनी सी है,
अभी अभी खुली है नींद,
पर आज नहीं बजा अलार्म।

पंछी चहचहा रहे हैं कहीं,
आवाज़ लगा रहा है दूधवाला,
कमरे में बिखरने को बेताब है
मोटे परदे के पार की धूप।

उबल रही है चाय पतीले में,
ख़ुशबू फैल रही है घर भर में,
रबर से बंधा पड़ा है अख़बार,
बाल्टी भर रही है गुसलखाने में।

यहीं कहीं पड़ा होगा ब्रीफ़केस,
बिख़रे होंगे टिफिन के डिब्बे,
कोई डर नहीं है आज मुझे
किसी बायोमिट्रिक मशीन का।