शनिवार, 26 जनवरी 2019

३४३. कोमल पत्ते


वसंत ने दस्तक दी है,
हल्की-सी ठंडी हवा चली है,
कांप उठे हैं नए कोमल पत्ते।

मत रोको उन्हें,
कुछ ग़लत नहीं है 
उनके सिहरने में,
इस उम्र और इस मौसम में 
ऐसा ही होता है.

अगर रोकोगे उन्हें,
तो पीले पड़ जाएंगे, 
तुम जैसे हो जाएंगे। 

शनिवार, 19 जनवरी 2019

३४२. रेलगाड़ी


मुझे रेलगाड़ी अच्छी लगती है,
दौड़ती चली जाती है
दो पटरियों पर लगातार, 
जैसे ध्यान-मग्न हो.

दिखाती चलती है 
धरती के अलग-अलग रंग,
मिलाती है अजनबियों से,
रुक जाती है प्लेटफ़ॉर्म पर 
सब के लिए बाहें फैलाए.

वैसे तो हवाई जहाज 
बड़ी जल्दी पहुंचा देता है 
अपनी मंज़िल पर,
मगर उसमें यात्रा का 
वह आनंद कहाँ,
जो रेलगाड़ी में है.

मुझे हवाई जहाज 
इसलिए भी पसंद नहीं 
कि वह हवा में उड़ता है 
और मुझे अच्छा लगता है 
ज़मीन से जुड़े रहना.

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

३४१. कविता का अर्थ


ज़रा-सी देर में मैंने 
लिख डाली एक कविता,
फिर सालों-साल निकलते रहे 
उसके कई-कई अर्थ.

जैसे एक नहीं,
कई कविताएं लिख दी हों मैंने,
फिर सौंप दिया हो उन्हें 
अनगिनत पाठकों को.

जो कविता लिखी थी मैंने,
छोड़ गई मुझको,
मुझसे बिछड़कर जैसे 
हवा में बिखर गई. 

अब मैं लिखूंगा 
एक और कविता,
संभालकर रखूँगा उसे, 
वह सिर्फ़ मेरी होगी 
और उसका अर्थ भी 
सिर्फ़ मेरा होगा. 


शनिवार, 5 जनवरी 2019

३४०. बूढ़ा पेड़

एक चिड़िया 
उड़ते हुए आई,
चहचहाने लगी 
पेड़ की डाल पर।

बूढ़ा पेड़ हर्षाया,
बहुत दिनों बाद 
दूर हुआ उसका
एकाकीपन।

बस थोड़ी देर और,
फिर उड़ जाएगी चिड़िया,
उसका घोंसला कहीं और है,
पर पेड़ ख़ुश है,
थोड़े समय के लिए ही सही,
चिड़िया उसके पास आई तो.

बूढ़े पेड़ पर पत्ते न सही, 
उसकी उम्मीदें हरी हैं,
शायद फिर एकाध बार 
आ जाय कोई चिड़िया,
बैठ जाय उसकी डाली पर,
शायद एकाध बार फिर 
सुनाई पड़ जाय उसे 
चिड़ियों की चहचहाट
मरने से पहले।