गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

309. इंसान

वह आदमी,
जिससे मैं सुबह मिला था,
कमाल का इंसान था,
बड़ा दयावान,
बड़ा संवेदनशील,
किसी का बुरा न करनेवाला,
किसी का बुरा न चाहनेवाला,
सब की खुशी में खुश,
सबके दुख में दुखी.

वही आदमी जब शाम को मिला,
तो बदला हुआ था,
निहायत घटिया किस्म का,
दूसरों के दर्द से बेपरवाह,
स्वार्थी, संवेदनहीन,
पीठ में छुरा भोंकनेवाला।

मैं सोचता हूँ,
सुबह का इंसान 
शाम तक अमानुष कैसे बन जाता है,
सचमुच आसान नहीं होता 
इन्सानों को समझना. 

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

३०८. पीढियां

मेरी नानी चाहती थी 
कि कुछ आदतें  
उनसे उनकी बेटी को मिले, 
पर मेरी माँ ने मेरी नानी से 
थोड़ी-सी आदतें ही लीं.

मेरी माँ भी चाहती थी 
कि मैं उनसे अपनी नानी की 
थोड़ी-सी आदतें ले लूं,
पर या तो मैं ले नहीं पाई 
या लेना ही नहीं चाहती थी.

अब मुझमें मेरी नानी का 
खून तो बहुत है,
पर उनका कोई गुण,
कोई आदत
शायद ही मिले. 

हर अगली पीढ़ी 
पिछली पीढ़ी से 
इसी तरह अलग हो जाती है,
पीढ़ियों के बीच बस 
खून का रिश्ता चलता रहता है.

शनिवार, 14 अप्रैल 2018

३०७.अँधेरा

कल रात बहुत बारिश हुई,
धुल गया ज़र्रा-ज़र्रा,
चमक उठा पत्ता-पत्ता,
बह गई राह की धूल,
निखर गई हर चीज़,
पर अँधेरा पहले-सा ही रहा,
छू भी नहीं पाई उसे 
बारिश की बूँदें.

जब बारिश थमी,
तो अँधेरा उतना ही घना था,
उसे भिगोना संभव नहीं था,
उसे भगाना ज़रूरी था,
उससे निपटने के लिए 
बारिश की नहीं, 
सूरज की ज़रूरत थी.

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

306.अन्याय के खिलाफ़


जब तक बैठा था दुम दबाकर,
दुःखी था मैं,
वार पर वार हो रहे थे,
पर खामोश था मैं,
चुपचाप सह रहा था,
कुछ कह नहीं रहा था,
डर रहा था 
कि कहीं कह दिया,
तो हमले बढ़ न जांय.

आत्म-ग्लानि में था मैं,
मिला नहीं पा रहा था 
ख़ुद से नज़रें,
मेरा ही अक्स 
मुझे कह रहा था,
'कायर, डरपोक'.

अब दूर कर दिया है 
मैंने डर को ख़ुद से,
अन्याय के खिलाफ़ 
आवाज़ उठा रहा हूँ मैं,
वार तो बढ़ गए हैं,
पर मैं उठ गया हूँ
अपनी ही नज़रों में
और महसूस कर रहा हूँ 
कि न्याय के लिए लड़ने में 
बहुत सुख है.

रविवार, 1 अप्रैल 2018

३०५. हथियार


तुम्हारे तीरों के प्रहार से 
छिटक गई है मेरी ढाल,
पर अभी बची हुई हैं 
मेरी हथेलियाँ,
जो होती रहेंगी छलनी,
रोकती रहेंगी तुम्हारे तीर.

जब नहीं रहेंगी हथेलियाँ,
तब भी बचा रहेगा मेरा सीना,
झेलता रहेगा तुम्हारे तीर.

जीते जी नहीं हरा पाएंगे 
तुम्हारे ये तीर मुझे,
अगर सच में जीतना चाहते हो,
तो आजमाओ मुझ पर 
कोई कोमल हथियार.