शुक्रवार, 30 जून 2017

२६६.विस्मृति

मैं कभी भूल जाऊं,
तो तुम मुझे याद दिला देना.

मुझे याद रहेगा,
कहाँ-कहाँ हैं हमारे मकान,
हमारे खेत, हमारी दुकान,
कहाँ-कहाँ हैं तुम्हारे गहने,
हीरे-मोती, सोना-चांदी,
किस-किस बैंक में हैं हमारे खाते,
किस स्कीम में जमा है कितनी पूँजी,
किसको दिया है कितना उधार.

सब कुछ रट सा गया है,
कुछ भी नहीं भूलूंगा मैं,
पर मुमकिन है, कभी भूल जाऊं 
कि तुम कौन हो.

कभी ऐसा हो जाय,
तो तुम मुझे याद दिला देना.

शनिवार, 24 जून 2017

२६५.ज़रूरी

इश्क में थोड़ा झुकना भी ज़रूरी है,
लम्बा चलना है, तो रुकना भी ज़रूरी है.

यह सोच कर तमाचा सह लिया मैंने,
कुछ पाना है अगर, तो खोना भी ज़रूरी है.

आवाज़ दूँ कभी, तो देख लेना मुड़ के,
जीना है अगर, तो उम्मीद भी ज़रूरी है.

पत्थर जो फेंको, तो ज़रा ज़ोर से फेंको,
कोशिश जो की है, तो नतीज़ा भी ज़रूरी है.

कोई डर है जो दिल में, दिल ही में रखो,
चेहरे से हौसला झलकना ज़रूरी है.

शुक्रवार, 16 जून 2017

२६४.रोना मना है

अगर किसी बात पर 
तुम्हारा दिल भर आए,
आंसू तुम्हारी पलकों तक चले आएं,
तो उन्हें पलकों में ही रोक लेना,
छलकने मत देना.

एक तो कमज़ोरी की निशानी है रोना
और कमज़ोर दिखना अच्छा नहीं है,
दूसरे, रोना सख्त़ मना  है,
क्योंकि तुम्हारे रोने से 
दूसरों की हंसी में 
ख़लल पड़ता है.

शनिवार, 10 जून 2017

२६३. आओ, चलो

आओ, अब चलो.

वह पहले सा प्रभाव,
पहले-सी सुनवाई,
तुम्हारी एक हांक पर 
दौड़े चले आना सब का,
तुम्हारी एक डांट पर 
साध लेना मौन,
तुम्हारा हर निर्णय 
पत्थर की लकीर समझा जाना -
अब बीते दिनों की बातें हैं.

देखते-ही-देखते 
छोटे हो गए हैं बड़े,
बड़े हो गए हैं समझदार,
तुम्हारी सलाह,
तुम्हारे निर्णय,
तुम्हारे विश्लेषण -
सब पर अब 
एक प्रश्न-चिन्ह लग गया है.

उठो, पहचानो सच को,
महसूसो बदली हुई फ़िज़ां,
समेटो अपनी चौधराहट,
आओ, अब चलो.