शनिवार, 29 अगस्त 2015

१८१. बहन



मुझे याद आती हैं
वे बचपन की बातें,
लूडो,सांप-सीढ़ी का खेल,
आम के पेड़ से कैरियाँ तोड़ना,
मुंह अँधेरे उठकर
बगीचे से फूल चुनना.

मुझे याद आता है
मंदिर में पलाथी मार कर
साथ-साथ पूजा करना,
दुर्गापूजा के पंडालों में घूमना,
सज-धजकर विसर्जन देखना.

हाँ, याद आता है
रात-रात भर जागकर
अंत्याक्षरी खेलना,
छोटी-छोटी बात पर झगड़ना,
फिर बिना देर किए
सुलह कर लेना.

मुझे याद आता है
कि मेरी छोटी-छोटी ज़रूरतों का
कितना ध्यान था तुम्हें,
कभी नहीं भूलती थी तुम
कि मुझे भिंडी की भाजी
और संतरे बहुत पसंद थे.

मुझे याद आती है
मेरी बीमारी में तुम्हारी उदासी,
मेरी सफलता में तुम्हारी ख़ुशी,
मेरी ख़ुशी में तुम्हारी हंसी.

तुमसे मैंने जाना
कि किस तरह बहनें
एक दिन माँ जैसी हो जाती हैं,
फ़र्क़ बस इतना होता है
कि वे उम्र में छोटी होती हैं
और एक न एक दिन उन्हें
पराए घर जाना होता है.

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

१८०. क्षितिज



क्षितिज वह जगह है
जहाँ धरती और आकाश
मिलते नहीं हैं,
पर मिलते से लगते हैं.

हम सब चाहते हैं
कि धरती और आकाश मिलें,
उनकी युगों-युगों की कामना
पूरी हो जाय,
उनकी तपस्या का उन्हें
फल मिल जाय.

अंतस की गहराइयों से
जो हम देखना चाहते हैं,
हमारी आँखें हमें
वही दिखाती हैं.

इसलिए हमें लगता है
कि धरती और आकाश
दूर कहीं मिल रहे हैं,
जबकि वे मिलते नहीं हैं,
वे कभी मिल ही नहीं सकते.

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

१७९. आईने में मैं

कई चेहरे मैंने देखे आईने में,
सब वहां मौजूद थे,
सब पहचाने थे,
सिवाय एक चेहरे के 
जो न पहचाना था,
न वहां मौजूद था.

बड़ी कोशिश की मैंने,
बहुत ज़ोर डाला दिमाग पर,
पर नहीं पहचान पाया 
वह अनजाना चेहरा. 

थक-हारकर मुझे 
पूछना पड़ा किसी से,
' यह अनजाना चेहरा, 
जो दिख रहा है आईने में,
किसका है ?'
वह हंसा, बोला, 'तुम्हारा'.  

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

१७८. झील में चाँद

आधी रात को जब 
गहरी नींद में सोई थी झील,
शरारत सूझी आम के पेड़ को,
उसने एक पका आम,
जो लटक रहा था 
झील के ऊपरवाली डाली से,
टप्प से टपका दिया. 

चौंक कर उठी झील,
डर के मारे चीखी,
गुस्से की तरंग उठी उसमें,
थोड़ा झपटी वह पेड़ की ओर,
पर छू नहीं पाई उसे,
कसमसा के रह गई.

दूर आकाश में चमक रहा था चाँद,
सब देख रहा था वह,
मुस्करा रहा था अपनी चालाकी पर,
रात वह भी तो उतर गया था 
झील में चुपके से,
इतना चुपके से 
कि झील को पता ही नहीं चला.