शनिवार, 13 सितंबर 2014

१३९. परिवर्तन

अब कोई बहस नहीं होगी,
न कोई अनदेखी, न अपमान.
बात-बात पर रूठ जाना,
हर चीज़ में नुक्स निकालना,
गुस्सा करना, चिड़चिड़ाना,
किस्मत को कोसना,
बेवज़ह की ज़िद करना -
अब सब बदल गया है.

मेरी रोज़-रोज़ की बदतमीज़ियाँ
अब बीते ज़माने की बात हो गई है.

पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा,
मेरा बेटा अब बच्चा नहीं रहा,
पिताजी, वह भी जवान हो गया है.

रविवार, 7 सितंबर 2014

१३८. पसंद और प्यार

तुम्हारे हाव-भाव,
तौर-तरीके,चाल-ढाल,
मुझे बिल्कुल पसंद नहीं,
मैं आँखें बंद करके सोचूँ,
तो कुछ भी ऐसा नहीं दिखता,
जो मैं तुममें पसंद कर सकूं,
पर न जाने क्यों,
तुम्हारा दुःख मुझसे 
सहा नहीं जाता,
तुम्हारी थोड़ी-सी तकलीफ़
मुझे बेचैन कर देती है,
न जाने क्यों  
मुझे हर वक्त 
तुम्हारा ख्याल रहता है.

कभी-कभी मैं सोचता हूँ,
काश, मैं तुम्हें प्यार नहीं करता,
जैसे कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करता.