दो हज़ार साल पहले
वह कौन था जिसने
उठाई थी सलीब,
वही सलीब जिस पर
उसे खुद चढ़ना था ?
वह कौन था ,
जिसका निकला था जुलूस,
जिसका उड़ा था मज़ाक,
जिसे मिला था दंड -
सच्चाई और अच्छाई का ?
तब से लगातार
वही सलीब, वही ईसा,
दोहराई जा रही है
वही पुरानी कहानी.
कितने हज़ार साल और लगेंगे
हालात बदलने में,
वह दिन कब आएगा,
जब सूली पर वही चढ़ेगा
जिसे उस पर चढ़ना चाहिए?
वह दिन कब आएगा
जब हम इतना कह सकेंगे
कि जो आदमी सूली पर चढ़ा है,
वह कम-से-कम ईसा नहीं है?
वह कौन था जिसने
उठाई थी सलीब,
वही सलीब जिस पर
उसे खुद चढ़ना था ?
वह कौन था ,
जिसका निकला था जुलूस,
जिसका उड़ा था मज़ाक,
जिसे मिला था दंड -
सच्चाई और अच्छाई का ?
तब से लगातार
वही सलीब, वही ईसा,
दोहराई जा रही है
वही पुरानी कहानी.
कितने हज़ार साल और लगेंगे
हालात बदलने में,
वह दिन कब आएगा,
जब सूली पर वही चढ़ेगा
जिसे उस पर चढ़ना चाहिए?
वह दिन कब आएगा
जब हम इतना कह सकेंगे
कि जो आदमी सूली पर चढ़ा है,
वह कम-से-कम ईसा नहीं है?
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंपता नहीं कितने साल लगेंगे...मगर उम्मीद पर दुनिया कायम है..
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना..
सादर
अनु
वह दिन कब आएगा
जवाब देंहटाएंजब हम इतना कह सकेंगे
कि जो आदमी सूली पर चढ़ा है,
वह कम-से-कम ईसा नहीं है?
..बहुत बढ़िया सार्थक रचना ..
....आज के हालातों में अनुत्तरित प्रश्न है यह ..
अपने भावों को ख़ूबसूरती से प्रस्तुति करती सुंदर सार्थक रचना...!
जवाब देंहटाएंRecent post -: सूनापन कितना खलता है.
समय के जवाब मांगता है सवाल ... बदलाव देगा इसका जवाब ...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
शानदार प्रस्तुति..नववर्ष की अग्रिम बधाई।।।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है