रविवार, 30 सितंबर 2012

५०.बारिश

जब आकाश में बादल छाए,
लगा कि तुम रूठ गई,
फिर अचानक बिजली चमकी,
जैसे एक झलक मिली 
और फिर तुम गायब.

जब बादल जोर से टकराए, 
लगा, मेरी किसी बात पर 
तुम्हें गुस्सा आ गया.

कभी-कभार का तुम्हारा थोड़ा सा प्यार,
जैसे अचानक बूंदा-बांदी हुई 
और बस...

सूख रही हैं उम्मीदें,
अब तो तरस खाओ,
मेरे छप्पर पर एक बार 
जम के बरस जाओ.

शनिवार, 22 सितंबर 2012

४९. चपातियाँ और गृहिणी

जल रहा है चूल्हे पर तवा,
सेंक रही है चपातियाँ गृहिणी.

सोच रही है, उसे भी सेंका जाता है 
इसी तरह उलट-पलटकर हर रोज,
पर लगता है पूरी तरह सिंकी नहीं वह,
वरना सिंकने  के बाद कहाँ लौटती हैं 
वापस गर्म तवे पर चपातियाँ.

गृहिणी सोचती है,
उससे ज्यादा भाग्यवान हैं चपातियाँ,
जो कभी लापरवाही से जल जाती हैं,
कम-से-कम मुक्त तो हो जाती हैं.

एक वह है, जो न सिंकती है,
न जलती है, न राख होती है,
बस सुर्ख लाल तवे पर
हर समय चढ़ी रहती है.

शनिवार, 15 सितंबर 2012

४८.कोरा कागज़

कोरा पड़ा हूँ न जाने कब से,
अब तो भरो मुझे,
लिख डालो कोई सुन्दर कविता,
कोई दमदार कहानी
या कोई असरदार लेख.

यह सब मुश्किल हो 
तो अपशब्द भी चलेंगे,
या कुछ शब्द जो वाक्य न बनें,
कुछ वर्ण जो शब्द न बनें.

आड़ी-तिरछी रेखाएँ भी चलेंगीं,
यहाँ तक कि छिड़की हुई स्याही भी,
पर उपेक्षा सहन नहीं होती,
कम-से-कम मुझे फाड़ तो दो.

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

४७.जूता

बहुत बुरा लगा मुझे,
जब उसने पहली बार पावों में डालकर
मुझे धूल,मिट्टी और कीचड़ में घसीटा.

अपमानित महसूस किया मैंने,
बहुत कसमसाया,बहुत कुनमुनाया,
यहाँ तक कि उसके मुलायम पावों को 
कहीं-कहीं से काट खाया,
पर वह ढीठ बना रहा,
मुझे ऊपर उठने ही नहीं दिया.

अब मैं अपमान का आदी हो गया हूँ,
न कसमसाता हूँ, न कुनमुनाता हूँ,
न काट खाने की कोशिश करता हूँ,
बस उसके पावों की हिफाज़त करता हूँ,
उसके आराम का ख्याल रखता हूँ.

कभी-कभी वह मेरी धूल झाड़ देता है,
मुझ पर पालिश कर देता है,
मैं सम्मानित महसूस करता हूँ,
मारे खुशी के मैं दमक उठता हूँ.