शनिवार, 28 जुलाई 2012

४२.माँ

जब तुम नहीं रहोगी
तो कौन बंद कराएगा टी.वी.
ताकि बहराते कानों को सुन सके 
ट्रेन की सीटी की आवाज़.


कौन झांक-झांक कर देखेगा
खिड़की के परदे की ओट से 
कि स्टेशन से आकर कोई रिक्शा
घर के बाहर रुका तो नहीं.


कौन कहेगा कि आज खाने में 
भरवां भिन्डी ज़रूर बनाना,
कौन कहेगा कि चाय में 
चीनी बहुत कम डालना.


कौन बतियाएगा घंटों तक,
पूछेगा छोटी से छोटी खबर,
साझा करेगा हर गुज़रा पल
सुख का या दुःख का.


जब मैं हँसूंगा तो कौन कहेगा,
अब बस भी करो,
मेरी आँखें कमज़ोर ही सही,
पर क्या मैं नहीं जानती 
कि तुम दरअसल हँस नहीं रहे 
हँसने का नाटक कर रहे हो. 

शनिवार, 21 जुलाई 2012

४१.सफ़ेद झूठ

सब सराहते हैं मेरे नाक-नक्श,
सब कहते है अच्छा लगता हूँ मैं,
पर यह आईना क्यों टांग अड़ाता है,
क्यों कहता है हर रोज बार-बार 
कि तुम बहुत बदसूरत हो,
इतने कि मैं भी नहीं देखना चाहता तुम्हें.


चलो, मैं भी नहीं देखूँगा कभी आईना,
जो इतना सफ़ेद झूठ बोलता है,
कैसे मान लूं मैं कि सारे लोग गलत हैं 
और यह बेजान आईना सही है?

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

४०. दूध और गृहिणी

भगोने में उबल रहा है दूध,
गृहिणी देख रही है एकटक
अपने अंदर ही अंदर उबलता
अपमान और अनदेखी का गुस्सा.


भगोने पर लगे ढक्कन से
ठहरता नहीं उफनता दूध,
पर गृहिणी का गुस्सा रुका है
शर्म,डर और संस्कार के ढक्कन से.


उफन-उफन के गिर रहा है दूध
किसी विकराल झरने की तरह,
अब तो उसने बुझा भी दी है
चूल्हे में जल रही आग.


गृहिणी सोचती है,
क्या वह भी उफनेगी कभी,
क्या वह भी बुझा सकेगी कभी,
अपमान और अनदेखी की आग
जो जला रही है उसे
न जाने कब से
बिना रुके, लगातार...

शनिवार, 7 जुलाई 2012

39. प्यार या सहारा

यह जो तुम्हारे कंधे पर 
मैंने अपना हाथ रखा है,
प्यार से रखा है,
क्या तुमने समझा है?

मेरी हथेलियों की 
थोड़ी अतिरिक्त  ऊष्मा,
एक अलग-सी कोमलता,
क्या तुमने महसूस की है?

यह जो तुम्हारे कंधे पर 
मैंने अपना हाथ रखा है,
सहारे के लिए नहीं रखा है,
सहारा ही लेना होता 
तो लाठी बेहतर होती,
न कसमसाती,
न एहसान जताती,
न इस दुविधा में रहती 
कि मैंने उसपर अपना हाथ 
सहारे के लिए रखा है 
या सिर्फ प्यार से...