शनिवार, 30 जून 2012

३८.पत्ते हवाओं से

हवाओं, मत उमेठो हमारे कान,
दुखते तो नहीं, पर देखो,
ये निगोड़े फूल मुस्कराते हैं,
कल की जन्मी कलियाँ 
मन-ही-मन खिलखिलाती हैं.


हवाओं, कभी तुम यहाँ, कभी वहाँ,
ठहरना तो सीखा ही नहीं तुमने,
तुम्हीं कहो, कैसे बदला लें,
कैसे रोकें तुम्हें खींचकर?
ये डालियाँ, ये टहनियाँ 
हमारी होकर भी 
साथ नहीं देती हमारा,
न जाने कब से जकड़ रखा है,
तय कर रखी है हमारी उड़ान की सीमा.


बुरा न मानो, हवाओं,
ठिठोली तो समझो,
मत रोकना हमारे कान उमेठना,
मत छीनना हमसे ये खुशी,
कोई तो हो, जो हमसे ये आज़ादी ले.

रविवार, 17 जून 2012

३७. रिटायरमेंट

मैं रिटायरमेंट से बहुत डरता हूँ ।

उस दिन समारोह होंगे,
उपहार दिए जायेंगे,
दुश्मन भी मुस्कराकर स्वागत करेंगे,
भाषणों में बखान होगा
मेरी योग्यता और योगदान का,
मेरे गुण, जो हैं या नहीं हैं,
चुन चुन कर गिनाये जायेंगे,
खुद को पह्चानना भी मुश्किल होगा,
कन्नी काट कर निकलने वाले भी
रुवांसे हो जायेंगे ।

बहुत कुछ वैसा ही होगा,
जैसा मौत पर होता है ।

पर अगले दिन से
बदल जायेगी दुनिया,
न किसी का फोन आएगा,
न किसी से बात होगी,
मिलने पर भी लोग
बेगानों जैसे पेश आयेंगे ।

मैं रिटायरमेंट से बहुत डरता हूँ,
इतना तो मौत से भी नहीं डरता,
मौत के बाद कुछ दिन ही सही
लोग याद तो रखते हैं !

रविवार, 10 जून 2012

३६.शर्म

देखो, कभी तुम थक जाओ 
तो सुस्ता लेना,
थकने में कोई शर्म नहीं है,
थकान को कभी मत छिपाना,
कुछ भी छिपाना गलत है.


कभी नींद आए तो सो जाना,
ज़रुरी नहीं कि रात को ही सोया जाए,
गलत नहीं है दिन में सोना,
सोने के लिए नींद ज़रुरी है,
अँधेरा नहीं. 


कभी दिल करे तो सोए रहना,
उठना ज़रुरी नहीं है,
नहीं उठने में कोई शर्म नहीं है,
हर कोई एक बार तो ऐसे सोता ही है 
कि फिर कभी न उठे.

रविवार, 3 जून 2012

३५.नई पगडंडी

बहुत चल चुके 
इन पुरानी पगडंडियों पर 
आओ, एक नई पगडंडी बनाएँ.


इन पत्तों,इन झाड़ियों से होकर 
निकलने का प्रयास करें,
देखें,क्या है उस तरफ,
कहाँ छिपे हैं साँप और बिच्छू,
कितनी दलदल है उधर,
कितने कांटे,कितना ज़हर?


चाहें तो ले लें कुछ हथियार,
जुटा लें थोड़ी हिम्मत,
(कौन सा हथियार है 
हिम्मत से बड़ा?)
छोड़ दें यह पगडंडी,
उतर पड़ें खतरों में,
शुरुआत हो जाय अब 
एक नई पगडंडी की.