तुम्हें पता है न
कि रंगीन पानी से भरा गुब्बारा,
जो तुम पिछले साल
खिड़की से फेंक कर भाग गई थी,
सड़क पर गिरकर बेकार हो जाता
अगर मैं लपककर पकड़ न लेता
और अपने सरपर फोड़ न लेता.
इस बार होली में
इस तरह फेंकना गुब्बारा
कि मुझपर आकर फूटे
या जिसे मैं लपक सकूँ
आसानी या मुश्किल से
और कर सकूँ
तुम्हारा प्रयास सार्थक.
भगवान न करे
कि तुम्हारा निशाना कभी चूके,
खासकर तब जब निशानेपर मैं होऊं
और तुम्हारा मकसद मुझे रंगना हो.
सीधी सच्ची इल्तिजा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सादगी से भरे भाव की अभिव्यक्ति,बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
निशाना सही बैठेगा तभी तो रंग पाऊंगा मैं, तुम्हारे रंग में....
जवाब देंहटाएंसुन्दर...
saral aur sunder.....bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंbeautiful :)
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेखन ..बधाई स्वीकारें
नीरज
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
जवाब देंहटाएंइस रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
नीरज
तन क्या आपने तो मन भी रंग दिया।
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